Read The Auspicious Time Of Establishment Of Ghat And Importance Of Worshiping Nine Forms Of Goddess Durga In Hasta Nakshatra And Indra Yoga

आईबीएन, डिजिटल डेस्क। 2024 का शारदीय नवरात्र 3 अक्टूबर, गुरुवार से प्रारंभ हो रहा है, जो 11 अक्टूबर तक चलेगा। इस बार नवरात्र का शुभ संयोग हस्त नक्षत्र और इंद्र योग के साथ जुड़ रहा है, जिससे भक्तों के लिए यह पर्व और भी महत्वपूर्ण हो गया है। इस दौरान मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा विधिपूर्वक की जाएगी, जो भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपरा का अभिन्न हिस्सा है।

कलश स्थापना और मुहूर्त:
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 2 अक्टूबर की रात 12:18 बजे से आरंभ हो रही है, जो 3 अक्टूबर को देर रात 2:58 बजे तक रहेगी। इस तिथि के अनुसार, कलश स्थापना का सही मुहूर्त कन्या लग्न में सुबह 6.15 बजे से लेकर 7.22 बजे तक है। इसके अलावा, अभिजीत मुहूर्त में सुबह 11:46 से दोपहर 12:33 तक भी कलश स्थापना की जा सकती है। यह मुहूर्त विशेष रूप से कलश स्थापना के लिए शुभ माना जाता है।

  • घट स्थापना तिथि: 3 अक्टूबर 2024
  • घट स्थापना मुहूर्त: सुबह 06 बजकर 15 मिनट से लेकर सुबह 07 बजकर 22 मिनट तक
  • अभिजित मुहूर्त: सुबह 11 बजकर 46 मिनट से दोपहर 12 बजकर 33 मिनट तक

नवरात्रि पर शुभ योग:
इस वर्ष नवरात्रि पर कई शुभ योग बन रहे हैं, जो भक्तों के लिए विशेष महत्व रखते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस बार इंद्र योग और सर्वार्थ सिद्धि योग का संयोग नवरात्रि को और भी शुभ बनाएगा। इस बार नवरात्रि के दौरान इंद्र योग का शुभ संयोग सुबह से लेकर 4 अक्टूबर को सुबह 4 बजकर 24 मिनट तक रहेगा। इंद्र योग का मतलब है कि इस समय देवी की पूजा करने से विशेष लाभ मिल सकता है। यह समय देवी की कृपा प्राप्त करने और सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करने के लिए अत्यंत शुभ है।

नवरात्रि के महत्व और देवी के स्वरूप:
शारदीय नवरात्र का धार्मिक महत्व अत्यधिक है, क्योंकि इस दौरान भक्त मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा करते हैं। हर दिन की पूजा के लिए एक विशेष देवी का चयन किया गया है। जैसे:

  • 3 अक्टूबर (प्रतिपदा): माता शैलपुत्री की पूजा। ये पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं और सफेद रंग को पसंद करती हैं। मां का पूजन शांति और पवित्रता का प्रतीक है।
  • 4 अक्टूबर (द्वितीया): माता ब्रह्मचारिणी की पूजा। ये तपस्या और साधना की देवी हैं। पीले रंग का महत्व इस दिन है, जो सुख और समृद्धि का प्रतीक है।
  • 5 अक्टूबर (तृतीया): देवी चंद्रघंटा का पूजन। ये शांति और साहस की देवी हैं। हरा रंग इस दिन के लिए शुभ माना जाता है।
  • 6 और 7 अक्टूबर (चतुर्थी): देवी कुष्मांडा का पूजन। नारंगी रंग ऊर्जा और उत्साह का प्रतीक होता है।
  • 8 अक्टूबर (पंचमी): माता स्कंदमाता का पूजन। ये भगवान कार्तिकेय की माता हैं और सफेद रंग को समर्पित हैं।
  • 9 अक्टूबर (षष्ठी): देवी कात्यायनी की पूजा। ये शक्ति और साहस की प्रतीक हैं। लाल रंग इस दिन के लिए शुभ है।
  • 10 अक्टूबर (सप्तमी): माता कालरात्रि का पूजन। ये बुराई का नाश करने वाली देवी हैं। नीला रंग इस दिन का प्रतीक है।
  • 11 अक्टूबर (अष्टमी और नवमी): माता महागौरी और सिद्धिदात्री की पूजा। गुलाबी और बैंगनी रंग इस दिन के लिए शुभ माने जाते हैं।

पूजा विधि और आयोजन:
नवरात्रि की शुरुआत में, भक्त घर या मंदिर में कलश की स्थापना करते हैं। इसके बाद मां दुर्गा का आह्वान किया जाता है। पूजा में धूप, दीप, अक्षत, पुष्प और प्रसाद अर्पित किए जाते हैं। नारियल, शृंगार और चुनरी मां को अर्पित करना अत्यंत प्रिय होता है।

दुर्गा सप्तशती, देवी महात्म्य, और गायत्री चालीसा का पाठ करने से देवी की कृपा प्राप्त होती है। इसके साथ ही, अगर मंत्र जाप का कोई संकल्प लिया गया है, तो उसका नियमित जाप करना चाहिए। पूजा के अंत में दुर्गा आरती की जाती है और फलाहार प्रसाद वितरित किया जाता है।

ज्योतिषीय संकेत:
हालांकि, इस बार चतुर्थी तिथि की वृद्धि और नवमी तिथि के क्षय से कुछ ज्योतिषीय संकेत प्रतिकूल परिस्थितियों की ओर इशारा कर रहे हैं। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, देवी का आगमन और प्रस्थान इस बार विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। यह संकेत देता है कि देवी के आगमन के समय और उनके वाहन के अनुसार पूरे वर्ष की भविष्यवाणी की जा सकती है। इस नवरात्रि में, माता के डोली में आने की वजह से धरती पर उथल-पुथल की आशंका जताई जा रही है। साथ ही, शनिवार 12 अक्टूबर को देवी का प्रस्थान भी होगा, जोकि चरणायुध अर्थात् पैदल जाने का संकेत देता है। इससे युद्ध और प्राकृतिक आपदाओं की संभावना बढ़ जाती है।

नवरात्रि का यह पर्व भक्तों के लिए आशीर्वाद और समृद्धि का प्रतीक है। हालांकि, वर्तमान ज्योतिषीय संकेतों को ध्यान में रखते हुए, भक्तों को सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है। श्रद्धा और भक्ति के साथ की गई पूजा न केवल व्यक्तिगत कल्याण लाएगी, बल्कि समाज और राष्ट्र के लिए भी मंगलकारी होगी। इस बार का नवरात्र निश्चित रूप से एक विशेष अनुभव होगा, जिसमें भक्तों को मां दुर्गा की कृपा की प्राप्ति होगी।

डिस्क्लेमर: यह लेख प्राचीन धार्मिक ग्रंथों, ज्योतिषीय मान्यताओं और परंपराओं पर आधारित है। इसमें दी गई जानकारी का उद्देश्य धार्मिक और सांस्कृतिक संदर्भों को समझाना है, न कि किसी प्रकार की भविष्यवाणी या वैज्ञानिक प्रमाण प्रस्तुत करना। पाठकों से अनुरोध है कि वे इन जानकारियों को अपनी व्यक्तिगत आस्थाओं और मान्यताओं के अनुसार ग्रहण करें। कोई भी निर्णय लेने से पहले विशेषज्ञों या धार्मिक गुरुओं से परामर्श लेना उचित होगा।