संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रम केवल प्रदर्शन के लिए नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण और समाज के जागरण के लिए होते हैं। उन्होंने लाठी चलाने की कला पर प्रकाश डालते हुए कहा, “लाठी चलाना केवल एक कला नहीं, बल्कि वीरता और आत्मविश्वास का प्रतीक है। इससे डर का भाव समाप्त होता है और मनुष्य में साहस का संचार होता है।”
संघ प्रमुख भागवत ने बताया कि संघ के प्रशिक्षण और गतिविधियों का उद्देश्य समाज के प्रत्येक व्यक्ति को मजबूत और आत्मनिर्भर बनाना है। उन्होंने कहा कि जब लोग संघ के साथ जुड़ते हैं, तो उनमें न केवल शारीरिक क्षमता का विकास होता है, बल्कि उनके स्वभाव और संस्कारों में भी सकारात्मक परिवर्तन आता है।
घोष दल की परंपरा और महत्व
संघ प्रमुख ने घोष दलों के महत्व पर चर्चा करते हुए कहा कि भारतीय परंपरा में घोष दलों की शुरुआत संघ ने की। नागपुर के कामठी छावनी में सेना के वादकों से प्रेरणा लेकर संघ ने यह परंपरा स्थापित की। भागवत ने कहा, “संगीत न केवल कला है, बल्कि यह देशभक्ति की भावना को जगाने का सशक्त माध्यम भी है। दूसरे देशों में देशभक्ति संगीत से प्रदर्शित होती है, और हमने भी यह समझा कि घोष दलों के माध्यम से समाज को प्रेरित किया जा सकता है।”
राष्ट्र निर्माण का आह्वान
अपने संबोधन में संघ प्रमुख भागवत ने समाज से आह्वान किया कि वे राष्ट्र निर्माण के इस महायज्ञ में भागीदार बनें। उन्होंने कहा, “जब समाज राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका निभाएगा, तब न केवल भारत, बल्कि समूची दुनिया सुख और शांति का युग देखेगी।”
45 मिनट तक चली घोष दल की धुनें
मालवा प्रांत के 28 जिलों के स्वयंसेवकों ने बांसुरी, ट्रंपेट, और बैंड जैसे वाद्य यंत्रों पर देशभक्ति की विभिन्न धुनों की प्रस्तुति दी। इन धुनों में “मेरी झोपड़ी के भाग खुल जाएंगे,” “राम आएंगे,” और “नमः शिवाय” जैसे भजनों की धुनें भी शामिल थीं। 45 मिनट तक चली इन प्रस्तुतियों ने आयोजन में मौजूद हर व्यक्ति को मंत्रमुग्ध कर दिया।
मुख्य अतिथि का विचार:
लोकगीत कलाकार कालूराम बामनिया, जो कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे, ने अपने संबोधन में कर्म की महत्ता पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “कर्म से मनुष्य महान बनता है। हमें अपने कर्मों से देश और समाज की सेवा करनी चाहिए।”
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का यह आयोजन केवल एक सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं था, बल्कि यह समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत था। कार्यक्रम में उपस्थित हर व्यक्ति ने संघ की शिक्षाओं और विचारों को आत्मसात करने का संकल्प लिया।