वन विभाग की सतर्कता से खुला गोंद तस्करी का बड़ा मामला, प्रदेश में हर साल 1000 करोड़ से अधिक का अवैध कारोबार
गणेश पाण्डेय, भोपाल। टिम्बर माफिया के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान के तहत इंदौर वन विभाग को एक बड़ी सफलता हाथ लगी है। वन संरक्षक पीएन मिश्रा और वन मंडलाधिकारी प्रदीप मिश्रा के मार्गदर्शन में चोरल रेंज में वन विभाग की टीम ने एक मिनी ट्रक से 628 किलोग्राम धावड़ गोंद बरामद किया है। बरामद गोंद की अनुमानित बाजार कीमत 8 लाख रुपये से अधिक बताई जा रही है।
सूचना मिलने के बाद की गई इस कार्रवाई में सुरतीपुरा गांव से एक पिकअप वाहन के गोंद लेकर निकलने की खबर थी। तत्पश्चात इंदौर-खंडवा मार्ग पर वाहन का पीछा कर उसे तलाई नाका बायपास पर घेराबंदी कर रोका गया। वाहन चालक लखन पिता देवकरण से पूछताछ में सामने आया कि वाहन में बड़ी मात्रा में धावड़ गोंद लोड है, लेकिन वह इसके संबंध में कोई वैध दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर सका।
मौके पर पूरे घटनाक्रम की वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी की गई। इसके बाद वाहन को वन परिसर तलाई लाया गया, जहां बीट गार्ड प्रवीण मीणा ने वन अपराध प्रकरण क्रमांक 587/07, दिनांक 1 अप्रैल 2025 को दर्ज किया। वाहन (टाटा एस, नीला रंग, नंबर MP37GA3270) और गोंद को जब्त कर लिया गया।
इस कार्रवाई में अमित निगम, प्रवीण मीणा, पवन कुशवाहा, अल्केश भूरिया, सुभाष कुशवाहा और देवेंद्र गुर्जर का अहम योगदान रहा।
हर साल 1000 करोड़ रुपये की होती है गोंद की चोरी
मध्य प्रदेश के जंगलों से हर साल लगभग एक हजार करोड़ रुपये मूल्य की सलई और धावड़ गोंद की चोरी की जाती है। यह गोंद मजदूरों और आदिवासियों से मात्र 50 से 100 रुपये प्रति किलो के दाम पर खरीदी जाती है, जबकि यही गोंद अंतरराष्ट्रीय बाजार, खासकर सऊदी अरब में 2000 रुपये प्रति किलो तक बिकती है।
इंदौर सहित प्रदेश के कई व्यापारी इस गोंद के बड़े पैमाने पर व्यापार में संलग्न हैं। ज्यादा मात्रा में गोंद निकालने के लिए पेड़ों की छाल को बुरी तरह खुरचकर नुकसान पहुंचाया जाता है। यह गोंद ‘गूगल’ बनाने में इस्तेमाल होती है, जिसका प्रयोग पूजा-पाठ और औषधियों में किया जाता है।
इंदौर बना गोंद कारोबार का केंद्र
प्रदेशभर से निकाली गई सलई गोंद का प्रमुख स्टॉक इंदौर में एकत्र होता है। यहां व्यापारियों के गोदामों में 200 से 500 क्विंटल तक का स्टॉक सामान्य रूप से देखने को मिल सकता है। वन विभाग की एक पुरानी कार्रवाई में फरवरी माह में एक व्यापारी के गोदाम से गोंद जब्त की गई थी, लेकिन बाद में वही स्टॉक उसी व्यापारी को सौंप दिया गया था। इस मामले ने गंभीर रूप ले लिया था और खंडवा वनवृत्त के तत्कालीन मुख्य वन संरक्षक (CCF) को अपने पद से हटना पड़ा था।
अब तक वनोपज की सूची से बाहर, लेकिन संघ ने दिखाई रुचि
गोंद को लेकर शासन और विभाग के बीच मतभेद भी सामने आए हैं। वन विभाग इसे वनोपज मानता है, लेकिन लघु वनोपज संघ इसे इस श्रेणी में शामिल नहीं करता। पूर्व के कई वरिष्ठ अधिकारियों ने शासन को पत्र लिखकर सलई और धावड़ गोंद को वनोपज की सूची में शामिल करने और तेंदूपत्ता या चिरौंजी की तरह इसे संग्रहण योग्य घोषित करने की मांग की थी, लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने मानी गोंद तस्करी की बात
पूर्व वनमंत्री और नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने खुद यह स्वीकार किया है कि प्रदेश में सलई गोंद का अवैध व्यापार तेजी से बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि यह कारोबार 500 करोड़ रुपये से अधिक का है, लेकिन विभागीय अधिकारी कार्रवाई करने से बचते हैं। खंडवा CCF के स्थानांतरण को भी उन्होंने इसी सिलसिले की कड़ी बताया।