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गणेश पाण्डेय, भोपाल। जंगलों की भी अपनी भाषा होती है — पक्षियों की चहचहाहट, पत्तों की सरसराहट, घास के बीच वन्यजीवों की आहट, और कभी अचानक गूंज उठने वाली बाघ की दहाड़। इन तमाम ध्वनियों के बीच अब पन्ना टाइगर रिजर्व की धरती पर एक ख़ामोशी छा गई है। यह ख़ामोशी उस बाघिन T-02 के बिछड़ने की है, जो न केवल पन्ना की शान थी बल्कि वन्य जीवन संरक्षण की एक जीती-जागती मिसाल भी।

28 मई 2025, एक साधारण तारीख नहीं, बल्कि वह दिन बन गया जब ‘पन्ना का हीरा’ कहे जाने वाली बाघिन T-02 ने अंतिम सांस ली। 19 वर्षों के दीर्घ जीवनकाल में उसने न केवल जंगल को आबाद किया बल्कि पूरे मध्यप्रदेश को वन्य संरक्षण की दिशा में एक नई ऊर्जा दी।

विलुप्ति की कगार से वापसी

वर्ष 2008 में जब पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या शून्य पर आ चुकी थी, तब पूरे देश में हड़कंप मच गया था। बाघ संरक्षण की इस विफलता ने विशेषज्ञों, पर्यावरणविदों और वन विभाग को चिंता में डाल दिया था। इसी संकट की घड़ी में 2009 में वायुसेना के विशेष विमान से पन्ना लाई गई बाघिन T-02 एक नई आशा की किरण बनकर आई।

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तब T-02 के साथ केवल एक बाघिन नहीं आई थी, बल्कि यह जंगलों को पुनर्जीवित करने की एक संकल्पना भी साथ लाई थी। उसकी आमद ने यह साबित कर दिया कि यदि इच्छाशक्ति और समर्पण हो तो जंगल फिर से जाग उठते हैं।

पुनर्स्थापन से पुनरागमन तक

हालांकि उसे लाने की योजना को ‘बाघ पुनर्स्थापन योजना’ कहा गया, लेकिन समय ने सिद्ध कर दिया कि T-02 ने केवल खुद को पुनर्स्थापित नहीं किया, बल्कि पन्ना में बाघों के पुनरागमन की नींव रख दी।

उसने T-03 के साथ मिलकर सात लिटर में 21 बाघों को जन्म दिया। उसकी संतानों और उनकी अगली पीढ़ियों के जरिये पन्ना में वर्तमान में 85 बाघों की उपस्थिति दर्ज की गई है — और इस सबका मूल स्रोत रही है T-02।

एक टेरिटरी नहीं, एक विरासत

T-02 की टेरिटरी पन्ना टाइगर रिजर्व के विशाल भूभाग तक ही सीमित नहीं थी, वह वन विभाग के कर्मचारियों और पर्यटकों के दिलों पर भी राज करती थी। सैलानी जब पहली बार पन्ना आते तो सबसे पहले पूछते – “T-02 कहां है? कब दिखाई देगी?” जैसे मानो वो उनसे पहले से परिचित हों।

वन विभाग के लिए हर बाघ खास होता है, लेकिन T-02 उनके लिए भावनात्मक जुड़ाव का प्रतीक थी। उसकी उपस्थिति ने पन्ना को न केवल जीवन दिया, बल्कि गौरव भी।

जंगल की भाषा अब उदास है

T-02 की मृत्यु के साथ पन्ना के जंगल ने अपनी सबसे तेज, सबसे प्रिय आवाज़ खो दी है। उसकी दहाड़, उसकी चाल, और उसका स्वाभिमानी व्यवहार अब केवल स्मृतियों में जीवित रहेगा।

लेकिन वह केवल ‘थी’ नहीं, वह ‘है’ और ‘रहेगी’ — हर उस कोने में जहां उसके पदचिन्ह हैं, हर उस वृक्ष की छांव में जहां वह कभी विश्राम करती थी, और हर उस दिल में जिसने उसे देखा, पहचाना, सराहा।

19 वर्षों का जीवंत इतिहास

19 साल — जो किसी फ्री-रेंजिंग टाइगर के लिए औसत से कहीं अधिक जीवनकाल है। इस लंबी उम्र में T-02 ने जितना दिया, शायद ही कोई बाघ इतनी गहराई से किसी अभयारण्य की पहचान बना हो।

T-02 के जीवन ने यह सिद्ध कर दिया कि एक बाघिन अकेले ही किसी पूरे परिदृश्य को बदल सकती है — बशर्ते उसका स्वागत खुले दिल से किया जाए और उसे सहारा दिया जाए।

एक मौन पुकार

अब जब पन्ना की रातों में एक दहाड़ की कमी खलने लगी है, तो यह सवाल बार-बार उठेगा —
“पन्ना का हीरा कहाँ खो गया?”

हम जंगल की उस मूक भाषा को समझ नहीं सकते, लेकिन इतना जरूर कह सकते हैं कि T-02 की कहानी सिर्फ एक बाघिन की नहीं, बल्कि वन्य संरक्षण के पुनर्जागरण की कहानी है।

श्रद्धांजलि, T-02
तुम्हारा जाना दुखद है, लेकिन तुम्हारी विरासत चिरंजीवी है।