चंद्रकेतु मिश्रा, प्रयागराज। पितृमोक्ष अमावस्या, जिसे आश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या के रूप में जाना जाता है, हिंदू धार्मिक परंपरा में पितरों के तर्पण, श्राद्ध और पिण्डदान का सबसे प्रमुख दिन माना जाता है। इसे पितृ विसर्जनी अमावस्या, महालय अमावस्या या सर्वपितृ अमावस्या भी कहा जाता है। यह वह तिथि है जब पितरों के प्रति श्रद्धा, कृतज्ञता और उनके मोक्ष की कामना के साथ विधिवत पूजन-अर्चन किया जाता है। इस दिन का महत्व वेद, उपनिषद, महाभारत, रामायण, गीता और पुराणों में कई स्थानों पर प्रतिपादित मिलता है।
पितृमोक्ष अमावस्या का महत्व वेदों से लेकर पुराणों तक समान रूप से प्रतिपादित है। यह दिन केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं बल्कि जीवन दर्शन का प्रतीक है, जिसमें पितरों का स्मरण, कृतज्ञता और मोक्ष की कामना निहित है। वेद कहते हैं कि पितृ तर्पण से वंश समृद्ध होता है, उपनिषद बताते हैं कि यह ऋण चुकाना आवश्यक है, रामायण पितृ वचन पालन का आदर्श प्रस्तुत करती है, गीता पितृ पूजन के फल का निर्देश देती है और पुराण इस तिथि की विशेषता पर बल देते हैं। इस प्रकार पितृमोक्ष अमावस्या का पर्व हमारे आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और पारिवारिक जीवन का अभिन्न अंग है।
वेदों में पितृ तर्पण का महत्व
ऋग्वेद और यजुर्वेद में पितरों के लिए विशेष मंत्रों का उल्लेख है। ऋग्वेद (10.15.1-11) में “पितृ सूक्त” मिलता है, जिसमें पितरों के आशीर्वाद से जीवन, आयु, प्रजाजन और समृद्धि की कामना की गई है।
- ऋग्वेद कहता है : “आग्नेय ये पितरः सोमतृप्ता, त आ गच्छन्तु” – अर्थात अग्नि और सोम से तृप्त पितर हमारे यहाँ उपस्थित हों और हमें आशीर्वाद दें।
- वेदों में यह भी स्पष्ट किया गया है कि पितृ ऋण से मुक्त हुए बिना मनुष्य मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता।
उपनिषदों में पितृ ऋण और तर्पण
उपनिषदों में त्रि-ऋण (देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण) का उल्लेख है। तैत्तिरीय उपनिषद (3.1) और शतपथ ब्राह्मण में कहा गया है कि प्रत्येक मनुष्य जन्म लेते ही इन ऋणों से बंध जाता है।
- पितृ ऋण को संतानोत्पत्ति, श्राद्ध और तर्पण द्वारा चुकाया जाता है।
- उपनिषद यह भी बताते हैं कि पितरों की तृप्ति से ही वंश की निरंतरता और परिवार का कल्याण सुनिश्चित होता है।
रामायण में पितृ भक्ति का आदर्श
रामायण में भगवान राम स्वयं पितृ आज्ञा और पितृ भक्ति के आदर्श रूप में देखे जाते हैं।
- राजा दशरथ ने जब कैकेयी को दिए वचनों की पालना की, तो राम ने वनवास स्वीकार किया। यह उनके पितृ वचन पालन का उदाहरण है।
- वाल्मीकि रामायण (अयोध्या कांड) में वर्णन आता है कि राम, लक्ष्मण और सीता वनवास जाते समय पितरों के तर्पण का संकल्प लेकर चले थे।
- इससे यह संदेश मिलता है कि पितरों के आदेश, श्राद्ध और कर्तव्यों का पालन धर्म का अनिवार्य अंग है।
महाभारत और गीता में पितृ श्रद्धा
महाभारत में भी पितृ तर्पण और श्राद्ध की परंपरा पर बल दिया गया है।
- भीष्म पितामह के उपदेशों में श्राद्ध और तर्पण की महिमा का वर्णन मिलता है।
- महाभारत (अनुशासन पर्व) में कहा गया है – “श्राद्धेन तृप्ताः पितरः प्रीयन्ते, तृप्ताः पितरः प्रजायाः प्रजननं कुर्वन्ति।” – अर्थात श्राद्ध से तृप्त पितर वंश की वृद्धि और समृद्धि करते हैं।
भगवद्गीता (9.25) में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं :
“पितृन् यान्ति पितृव्रताः।”
– जो लोग पितरों का पूजन करते हैं, वे पितृलोक में जाते हैं। इसका अर्थ है कि पितृ पूजा से आत्मा को गति और वंशजों को आशीर्वाद मिलता है।
पुराणों में पितृमोक्ष अमावस्या का महत्व
- गरुड़ पुराण : इसमें स्पष्ट उल्लेख है कि पितरों का श्राद्ध न करने से वे प्रीत नहीं होते और परिवार में बाधाएँ उत्पन्न होती हैं।
- मत्स्य पुराण : आश्विन अमावस्या को “सर्वपितृ अमावस्या” कहा गया है, जब सभी पितरों को तर्पण अर्पित किया जा सकता है, भले ही श्राद्ध पक्ष में तिथियाँ छूट गई हों।
- स्कंद पुराण : कहता है कि इस दिन गयाजी, गया, वाराणसी, प्रयाग, नर्मदा तट या किसी पवित्र नदी में स्नान करके तर्पण करने से पितरों की आत्मा को मुक्ति मिलती है।
पितृमोक्ष अमावस्या के अनुष्ठान
- स्नान और संकल्प : सूर्योदय से पूर्व पवित्र नदी या कुएँ के जल से स्नान कर संकल्प लिया जाता है।
- तर्पण : काला तिल, जल, कुश और जौ से पितरों का तर्पण किया जाता है।
- पिण्डदान : चावल, तिल और जौ से पिण्डदान कर पितरों को संतुष्ट किया जाता है।
- दान और ब्राह्मण भोजन : श्राद्ध के बाद दान और ब्राह्मण भोज कराया जाता है।
पितृमोक्ष अमावस्या केवल धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं बल्कि पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता का पर्व है। यह हमें यह याद दिलाती है कि हम अपने पूर्वजों की देन से ही अस्तित्व में हैं। उनके प्रति आभार और सम्मान हमारी संस्कृति का अनिवार्य अंग है।
