नर्मदापुरम वनमंडल में सागौन के 1280 पेड़ों की अवैध कटाई, इतिहास की सबसे बड़ी आर्थिक क्षति — पीसीसीएफ ने मांगा मार्गदर्शन, मंत्रालय ने चुप्पी साधी
गणेश पाण्डेय, भोपाल। मध्य प्रदेश के नर्मदापुरम वनमंडल में सामने आए एक बड़े वन अपराध ने प्रदेश के वन विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। इटारसी परिक्षेत्र की छीपीखापा बीट में अवैध कटाई के चलते विभाग को ₹2.04 करोड़ से अधिक की शुद्ध हानि हुई है। यह अब तक की वन विभाग के इतिहास में सबसे बड़ी आर्थिक क्षति मानी जा रही है।
गंभीर बात यह है कि इतनी बड़ी हानि के बावजूद ना तो किसी अधिकारी-कर्मचारी की जवाबदेही तय की गई है, न ही कोई चार्जशीट जारी हुई है। पीसीसीएफ (संरक्षण) विभाष ठाकुर ने इस संबंध में एसीएस अशोक वर्णवाल और वनबल प्रमुख वी.एन. अम्बाड़े को पत्र लिखकर कार्रवाई हेतु मार्गदर्शन मांगा था, परंतु एक सप्ताह बीत जाने के बाद भी मंत्रालय या मुख्यालय से कोई जवाब नहीं मिला है।
निरीक्षण में उजागर हुई भारी गड़बड़ी
राज्य स्तरीय उड़नदस्ता दल और स्थानीय वन अमले ने 9–10 सितंबर तथा 12–14 सितंबर के बीच छीपीखापा बीट का निरीक्षण किया था। इस दौरान 1242 सागौन और 38 सतकटा के ठूंठ, कुल 1280 पेड़ों के अवैध रूप से काटे जाने का खुलासा हुआ।
जांच में पाया गया कि 1 जनवरी 2023 से लेकर निरीक्षण की तारीख तक जिन वन अपराध प्रकरणों का पंजीयन हुआ, उनकी तुलना करने पर सागौन के 693 और सतकटा के 7 ठूंठों के लिए कोई भी अपराध प्रकरण दर्ज नहीं पाया गया। बाद में 18 सितंबर 2025 को अपराध प्रकरण क्रमांक 13707/74 पंजीबद्ध किया गया।
अवैध कटाई से ₹2,04,95,770/- की आर्थिक हानि दर्ज की गई। पीसीसीएफ संरक्षण ने अपने पत्र में लिखा कि इतनी बड़ी क्षति के लिए किस अधिकारी या कर्मचारी के विरुद्ध क्या कार्रवाई की जाए, इस बारे में विभाग के पास कोई स्पष्ट दिशानिर्देश मौजूद नहीं हैं। उन्होंने मंत्रालय से यथोचित मार्गदर्शन की मांग की है।
जवाबदेही से बचाव का आरोप, रिटायर्ड अधिकारी ने उठाए सवाल
इस मामले में विभागीय जवाबदेही को लेकर भी गंभीर आरोप सामने आए हैं। रिटायर्ड एसडीओ मानसिंह मरावी ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर सवाल उठाए हैं कि इतनी बड़ी कटाई के बावजूद विभाग के वरिष्ठ अधिकारी अपनी जिम्मेदारी से बचने की कोशिश कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि मुख्य वन संरक्षक (CCF) की जिम्मेदारी में आने वाले क्षेत्र में इतनी बड़ी अवैध कटाई हुई, लेकिन उन्हें SDO मानसिंह मरावी और रेंजर महेंद्र गौर को बलि का बकरा बनाने की कोशिश की जा रही है।
मरावी ने पत्र में लिखा कि CCF को विभाग की सुरक्षा की कमान सौंपी जाती है, लेकिन उन्होंने छिपीखापा बीट का निरीक्षण कभी नहीं किया, जबकि वह रानीपुर रोड से महज 1 किमी की दूरी पर स्थित है। CCF को 1 फरवरी और 5 मई 2025 को डीएफओ मयंक गुर्जर ने लिखित रूप से सचेत किया था, इसके बावजूद कोई निगरानी नहीं की गई।
उन्होंने कहा कि अगर CCF ने थोड़ी भी सतर्कता दिखाई होती, तो वन विनाश की यह ऐतिहासिक घटना टाली जा सकती थी। शासन द्वारा केवल CCF नर्मदापुरम वृत और DFO नर्मदापुरम (सामान्य) को जिम्मेदार ठहराना ही न्यायोचित कदम होगा।
मंत्रालय की चुप्पी ने बढ़ाई शंकाएँ
पीसीसीएफ संरक्षण विभाष ठाकुर द्वारा भेजे गए पत्र को एक सप्ताह से अधिक बीत चुका है, लेकिन वन मंत्रालय या मुख्यालय से किसी भी प्रकार का स्पष्ट निर्देश नहीं मिला है। यह प्रशासनिक शिथिलता न केवल बड़े राजस्व नुकसान का संकेत देती है, बल्कि अवैध कटाई में प्रभावशाली तंत्र की मिलीभगत पर भी प्रश्न खड़े करती है।
