नईदिल्ली
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि भारत को 'युद्ध जैसी स्थिति' के लिए तैयार रहना चाहिए क्योंकि मई में पाकिस्तान के साथ चार दिनों के सैन्य संघर्ष ने दिखा दिया कि सीमाओं पर कभी भी कुछ भी हो सकता है। एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सिंह ने कहा कि भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान को 'कड़ा जवाब' दिया था, लेकिन इसे राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौतियों से निपटने में भविष्य की कार्रवाई की रूपरेखा तैयार करने और सीखने के लिए एक केस स्टडी के रूप में काम करना चाहिए।
रक्षा मंत्री ने कहा कि 7-10 मई के अभियान के दौरान स्वदेशी निर्मित सैन्य उपकरणों के प्रभावी उपयोग से क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की प्रतिष्ठा बढ़ी है। सिंह ने यह भी कहा कि ऑपरेशन सिंदूर के कारण ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है, जहां युद्ध भी 'हमारे दरवाजे पर दस्तक दे रहा' था। उन्होंने कहा, 'हालांकि हमने दृढ़ संकल्प के साथ जवाब दिया और हमारी सेनाएं देश की सीमाओं की रक्षा के लिए पूरी तरह तैयार हैं, फिर भी हमें आत्मचिंतन करते रहना होगा।'
मंत्री ने कहा, 'ऑपरेशन सिंदूर एक केस स्टडी के रूप में काम करेगा जिससे हम सीख सकें और अपना भविष्य तय कर सकें। इस घटना ने हमें एक बार फिर दिखाया है कि हमारी सीमाओं पर, कहीं भी, कभी भी कुछ भी हो सकता है।' उन्होंने कहा, 'हमें युद्ध जैसी स्थिति के लिए तैयार रहना होगा और हमारी तैयारी हमारी अपनी बुनियाद पर आधारित होनी चाहिए।'
रक्षा मंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि वर्तमान वैश्विक अनिश्चितताएं प्रत्येक क्षेत्र का गहन मूल्यांकन करने की मांग करती हैं, तथा चुनौतियों से निपटने के लिए 'स्वदेशीकरण' ही एकमात्र रास्ता है। उन्होंने कहा, 'स्थापित विश्व व्यवस्था कमजोर हो रही है और कई क्षेत्रों में संघर्ष क्षेत्र बढ़ रहे हैं। इसलिए, भारत के लिए अपनी सुरक्षा और रणनीति को नए सिरे से परिभाषित करना आवश्यक हो गया है।'
सिंह ने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान दुनिया ने आकाश मिसाइल प्रणाली, ब्रह्मोस, आकाशतीर वायु रक्षा नियंत्रण प्रणाली और अन्य स्वदेशी उपकरणों और प्लेटफार्मों की शक्ति देखी। इस ऑपरेशन की सफलता का श्रेय बहादुर सशस्त्र बलों के साथ-साथ 'उद्योग योद्धाओं' को भी जाता है, जिन्होंने नवाचार, डिजाइन और विनिर्माण के क्षेत्र में अग्रिम पंक्ति में काम किया।
उन्होंने भारतीय उद्योग को थलसेना, नौसेना और वायुसेना के साथ रक्षा के सबसे महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक बताया। सिंह ने बताया कि सरकार रक्षा विनिर्माण को बढ़ाने और घरेलू पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने के लिए समान अवसर उपलब्ध करा रही है और उद्योग को इस अवसर का पूरा लाभ उठाना चाहिए।
उन्होंने कहा, 'हम यह सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहे हैं कि रक्षा उपकरण न केवल देश में तैयार किए जाएं, बल्कि ‘मेड इन इंडिया, मेड फॉर द वर्ल्ड’ की भावना को मूर्त रूप देने वाले उपकरण बनाने के लिए एक वास्तविक विनिर्माण आधार स्थापित किया जाए।'
उन्होंने कहा, 'नवाचार और अनुसंधान एवं विकास की संस्कृति विकसित करने के लिए क्वांटम मिशन, अटल नवाचार मिशन और राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन जैसी अनेक पहल की गई हैं। हमारे उद्योग को वह हासिल करना होगा जो देश में अभी तक हासिल नहीं हुआ है।' रक्षा मंत्री ने कहा कि 2014 से पहले भारत अपनी सुरक्षा जरूरतों के लिए पूरी तरह से आयात पर निर्भर था, लेकिन आज वह अपनी धरती पर ही रक्षा उपकरणों का निर्माण कर रहा है।
उन्होंने कहा, 'हमारा रक्षा उत्पादन, जो 2014 में केवल 46,000 करोड़ रुपये था, अब बढ़कर रिकॉर्ड 1.51 लाख करोड़ रुपये हो गया है, जिसमें से 33,000 करोड़ रुपये का योगदान निजी क्षेत्र का है।' उन्होंने कहा, 'हमारा रक्षा निर्यात, जो 10 साल पहले 1,000 करोड़ रुपये से भी कम था, अब लगभग 24,000 करोड़ रुपये के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। मुझे विश्वास है कि मार्च 2026 तक रक्षा निर्यात 30,000 करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा।'
स्वदेशीकरण को और बढ़ाने के लिए, सिंह ने उद्योग से आग्रह किया कि वे आपूर्ति श्रृंखलाओं पर प्रभुत्व स्थापित करने का प्रयास करें, तथा केवल सम्पूर्ण प्लेटफॉर्म पर ही नहीं, बल्कि व्यक्तिगत उप-प्रणालियों और घटकों के स्वदेशी विनिर्माण पर ध्यान केंद्रित करें। रक्षा मंत्री ने कहा कि विदेशों से प्रमुख उपकरणों की खरीद से रखरखाव और जीवन-चक्र लागत के मामले में भारत के संसाधनों पर दबाव पड़ता है।
उन्होंने कहा, 'चूंकि किसी भी प्रणाली में बड़ी संख्या में घटक और इनपुट होते हैं, इसलिए इन उप-प्रणालियों का स्वदेशी निर्माण हमारी स्वदेशी सामग्री को बढ़ाने में मदद कर सकता है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि ‘हमारी मिट्टी, हमारा कवच’ हमारी पहली पसंद बने।' रक्षा मंत्री ने कहा कि उद्देश्य केवल भारत में संयोजन करना नहीं होना चाहिए, बल्कि देश के भीतर प्रौद्योगिकी आधारित विनिर्माण विकसित करना होना चाहिए। उन्होंने कहा, 'हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी प्रौद्योगिकी हस्तांतरण प्रभावी हो और हमारे स्वदेशी उद्योगों को सशक्त बनाने का साधन भी बने।'
