हरतालिका तीज एक ऐसा पर्व है, जो न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह पर्व नारी शक्ति, प्रेम, और समर्पण का प्रतीक है और वैवाहिक जीवन में सुख, समृद्धि और स्थायित्व की कामना करता है। हरतालिका तीज का व्रत एक बार करने के बाद जीवनभर के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है और इसे महिलाओं के जीवन का अभिन्न हिस्सा माना जाता है।
आईबीएन, डेस्क। हरतालिका तीज भारतीय संस्कृति में नारी शक्ति, समर्पण और प्रेम का प्रतीक पर्व है, जो खासकर महिलाओं के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है। यह त्यौहार खासतौर पर कुंआरी कन्याओं और विवाहित महिलाओं के बीच विशेष महत्व रखता है। हरतालिका तीज मुख्य रूप से देवी पार्वती और भगवान शिव की आराधना के लिए मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं व्रत रखकर भगवान शिव और माता पार्वती से अपने वैवाहिक जीवन में प्रेम, स्थायित्व, और सुख की कामना करती हैं। इस पर्व का ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व बहुत गहरा है, और यह भारत के विभिन्न हिस्सों में विभिन्न रूपों में मनाया जाता है।
हरतालिका तीज का शाब्दिक अर्थ और पौराणिक कथा

हरतालिका तीज का शाब्दिक अर्थ “हरत” यानी अपहरण और “आलिका” यानी सहेली से लिया गया है। तीज का मतलब है तृतीया तिथि। इस त्यौहार से जुड़ी प्रमुख कथा यह है कि देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। देवी पार्वती का विवाह उनके पिता हिमालय, भगवान विष्णु से करवाना चाहते थे, लेकिन पार्वती जी ने शिव जी को अपने पति के रूप में चुना था। अपनी इच्छा के खिलाफ विवाह से बचने के लिए, उनकी सहेलियां उनका अपहरण कर जंगल में ले गईं, जहां उन्होंने भगवान शिव की आराधना की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर, भगवान शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। इसी प्रसंग की याद में हर साल हरतालिका तीज मनाई जाती है।
हरतालिका तीज का धार्मिक महत्व

यह पर्व महिलाओं के लिए खासकर वैवाहिक जीवन की समृद्धि और सौभाग्य की कामना का प्रतीक माना जाता है। इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुखी जीवन के लिए व्रत करती हैं। कुंआरी कन्याएं भी इस व्रत को अपने इच्छित जीवनसाथी की प्राप्ति के लिए करती हैं। इस व्रत को बेहद कठिन माना जाता है क्योंकि इसमें महिलाएं बिना पानी के, निर्जला व्रत रखती हैं और रात्रि जागरण करती हैं। इस व्रत को करने वाली महिलाओं के लिए यह आस्था का प्रतीक होता है, और वे इसे पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ करती हैं। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा का विशेष महत्व होता है, और पूजन विधि भी अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है।
पूजा विधि और व्रत का महत्व

हरतालिका तीज की पूजा प्रदोष काल में की जाती है, जो दिन और रात के मिलने का समय होता है। इस दिन महिलाएं शिव, पार्वती और गणेश की मूर्तियों की पूजा करती हैं। इन मूर्तियों को बालू, रेत या काली मिट्टी से बनाया जाता है। पूजा के लिए पहले एक मंडप तैयार किया जाता है जिसमें रंगोली बनाई जाती है। पूजा स्थल पर अष्टदल बनाकर उसके केंद्र में भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं। पूजा की शुरुआत घी का दीप जलाकर की जाती है और फिर महिलाएं अपने दाहिने हाथ में अक्षत, रोली, बेलपत्र, मूंग, फूल, और जल लेकर संकल्प करती हैं।

पूजा के दौरान भगवान शिव को धोती-अंगोछा चढ़ाया जाता है, जबकि सुहाग सामग्री अपनी सास को अर्पण कर दी जाती है। पूजा समाप्त होने के बाद व्रत कथा का श्रवण किया जाता है, जिसमें देवी पार्वती और भगवान शिव की कथा सुनाई जाती है। इसके बाद रात्रि जागरण का भी विधान है, जिसमें महिलाएं पूरी रात जागकर भजन-कीर्तन करती हैं और भगवान की स्तुति करती हैं।
व्रत की पूजा विधि में जो सबसे महत्वपूर्ण है, वह है सिन्दूर का अर्पण। अगले दिन सुबह, पूजा समाप्ति के बाद महिलाएं माता पार्वती को सिन्दूर अर्पित करती हैं और हलवे का भोग लगाती हैं। इसके बाद व्रत खोलने की प्रक्रिया होती है, जहां महिलाएं ककड़ी और हलवा खाकर उपवास तोड़ती हैं।
हरतालिका तीज और क्षेत्रीय विविधताएँ
- उत्तर भारत में हरतालिका तीज
उत्तर भारत में हरतालिका तीज विशेष रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। इन राज्यों में यह त्यौहार विशेष महत्व रखता है, और महिलाएं इसे बहुत श्रद्धा और भक्ति से मनाती हैं। इस दिन महिलाएं सुहागिन वस्त्र धारण करती हैं, हरे रंग की साड़ियां, लाल चूड़ियां और सिन्दूर धारण करती हैं। वे मेहंदी लगाती हैं और भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष पूजा करती हैं। उत्तर भारत में इस दिन विशेष गीत भी गाए जाते हैं, जो इस पर्व की भव्यता को और भी बढ़ा देते हैं। - दक्षिण भारत में गौरी हब्बा
दक्षिण भारत में हरतालिका तीज को “गौरी हब्बा” के नाम से जाना जाता है। खासतौर पर कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में इस पर्व को विशेष रूप से मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं स्वर्ण गौरी व्रत रखती हैं और माता गौरी से सुखी वैवाहिक जीवन की कामना करती हैं। यहां पूजा विधि थोड़ी भिन्न होती है, लेकिन आस्था और श्रद्धा का स्तर समान ही रहता है। महिलाएं इस दिन नए वस्त्र धारण करती हैं, और अपने सुहाग की लंबी उम्र और घर की समृद्धि के लिए माता गौरी से प्रार्थना करती हैं।
हरतालिका तीज व्रत की विशेषताएँ

हरतालिका तीज का व्रत अपने आप में खास है क्योंकि इसे करने के लिए अत्यधिक धैर्य और श्रद्धा की आवश्यकता होती है। इसे निर्जला व्रत कहा जाता है, क्योंकि व्रतधारी महिलाएं इस दिन पानी भी नहीं पीतीं। यह व्रत संतान और वैवाहिक सुख के लिए अत्यधिक प्रभावशाली माना जाता है। इस व्रत का विशेष नियम यह है कि इसे एक बार करने के बाद छोड़ा नहीं जा सकता। यह व्रत उस व्रत की श्रृंखला का हिस्सा बन जाता है जिसे महिलाएं अपने पूरे जीवनभर करती हैं।
रात्रि जागरण और पूरी रात पूजा कीर्तन इस व्रत का मुख्य आकर्षण है। महिलाएं समूह में इकट्ठा होकर भजन गाती हैं और पारंपरिक गीतों के माध्यम से भगवान शिव और माता पार्वती की स्तुति करती हैं। पूजा के दौरान व्रत कथा सुनाई जाती है, जो देवी पार्वती और भगवान शिव के विवाह की पौराणिक कथा पर आधारित होती है।
व्रत कथा और मंत्र
व्रत के दौरान महिलाएं हरतालिका तीज की कथा सुनती हैं, जिसमें बताया जाता है कि किस प्रकार देवी पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त किया। पूजा के दौरान विभिन्न मंत्रों का उच्चारण किया जाता है, जो भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना के लिए होते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख मंत्र हैं:
भगवती-उमा की आराधना मंत्र:
- ॐ उमायै नम:
- ॐ पार्वत्यै नम:
- ॐ जगद्धात्र्यै नम:
- ॐ जगत्प्रतिष्ठयै नम:
भगवान शिव की आराधना मंत्र
- ॐ हराय नम:
- ॐ महेश्वराय नम:
- ॐ शम्भवे नम:
- ॐ शूलपाणये नम:
इन मंत्रों का उच्चारण व्रत के दौरान महिलाओं की भक्ति और आस्था को और भी गहरा बनाता है।
हरतालिका तीज का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
हरतालिका तीज केवल धार्मिक या आध्यात्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह भारतीय समाज में नारी शक्ति, प्रेम, और विश्वास का प्रतीक है। यह पर्व महिलाओं को एकजुट करने का अवसर प्रदान करता है, जहां वे मिलकर भजन-कीर्तन करती हैं, पूजा करती हैं और एक-दूसरे के सुख-दुख साझा करती हैं।

हरतालिका तीज न केवल वैवाहिक जीवन की समृद्धि के लिए बल्कि समाज में महिलाओं की भूमिका को भी मजबूती से स्थापित करता है। यह पर्व हमें यह संदेश देता है कि आस्था और श्रद्धा के साथ किया गया कोई भी कार्य निश्चित रूप से फलदायक होता है।
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