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लिविंग प्लैनेट इंडेक्स 2024 में हुआ खुलासा, वन्यजीवों के लुप्त होने का बढ़ता खतरा

आईबीएन, डिजिटल डेस्क। लंदन की जूलॉजिकल सोसायटी (ZSL) द्वारा जारी की गई लिविंग प्लैनेट इंडेक्स रिपोर्ट 2024 के अनुसार, 1970 से 2020 के बीच निगरानी किए गए वन्यजीवों की आबादी में 73 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। इस रिपोर्ट ने दुनिया भर में वन्यजीवों के पर्यावास को हो रहे नुकसान, आक्रामक जीवों और बीमारियों के बढ़ते खतरे को जिम्मेदार ठहराया है। रिपोर्ट में शामिल 5495 जीवों की 35,000 आबादी में बड़ी गिरावट दर्ज की गई, जिसमें फ्रेशवॉटर इंडेक्स में सबसे अधिक 85 प्रतिशत, स्थलीय इंडेक्स में 69 प्रतिशत, और समुद्र इंडेक्स में 56 प्रतिशत गिरावट पाई गई।

प्रकृति और जलवायु के खतरों का संकेत

वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड (WWF)-इंडिया ने इस रिपोर्ट पर गहरी चिंता जाहिर की है। WWF इंटरनैशनल के डायरेक्टर जनरल कर्स्टन शूइट ने कहा कि प्रकृति लगातार संकट का संकेत दे रही है। जलवायु परिवर्तन और पर्यावास में हो रहे बदलाव के कारण पूरी पृथ्वी की जीवन रक्षक प्रणालियों पर खतरा बढ़ता जा रहा है।

पिछले 50 सालों में वन्यजीवों की आबादी में 73 प्रतिशत की गिरावट

 

भारत में स्थिति स्थिर, पर गिद्धों की प्रजातियों पर संकट

भारत में भी वन्यजीवों की आबादी में गिरावट देखी गई है, हालांकि कुछ प्रजातियों की आबादी स्थिर बनी हुई है। बाघों की आबादी में भारत ने दुनिया भर में सबसे अधिक संख्या बनाए रखी है। रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण आर्दभूमियों के लाभ, जैसे बाढ़ नियंत्रण और भूजल के पुनर्भरण, में भी कमी देखी गई है, जिससे चेन्नै में सूखे और बाढ़ जैसी समस्याएं सामने आईं। भारत में गिद्धों की तीन प्रमुख प्रजातियों – जिप्स बेंगालेंसिस, भारतीय गिद्ध (जिप्स इंडिकस), और पतली चोंच वाले गिद्ध (जिप्स टेनुइरॉस्ट्रिस) – की आबादी में तेजी से गिरावट दर्ज की गई है। 1992 से 2020 के बीच इन प्रजातियों की संख्या में चिंताजनक कमी आई है। 2022 में बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (BNHS) द्वारा किए गए सर्वेक्षण के अनुसार, सफेद पूंछ वाले गिद्धों की आबादी में 67%, भारतीय गिद्धों में 48%, और पतली चोंच वाले गिद्धों में 89% की गिरावट पाई गई है। विशेष रूप से, यह गिरावट 2002 से बढ़ी है, जिससे इन प्रजातियों के अस्तित्व पर गंभीर संकट मंडरा रहा है। गिद्धों के घटने की मुख्य वजह डाइक्लोफेनाक नामक दर्द निवारक दवा रही है, जिसका पशुओं पर इस्तेमाल करने से गिद्धों की मृत्यु हो रही थी। हालांकि इस दवा पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, लेकिन अभी भी गिद्धों की संख्या में सुधार नहीं हो पाया है।

WWF-इंडिया के जनरल सेक्रेट्री और सीईओ रवि सिंह ने कहा कि यह रिपोर्ट प्रकृति, जलवायु और मानव कल्याण के बीच गहरे संबंध को रेखांकित करती है। अगले पांच सालों में लिए जाने वाले निर्णय पृथ्वी के भविष्य के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होंगे।