Inshot 20241029 115320059

डॉ. मनीष मिश्रा

महाराजा विक्रमादित्‍य सीनियर फैलो, महाराजा विक्रमादित्‍य शोध पीठ, भोपाल 

स्वास्थ्य प्रथाओं की समृद्ध और विविध परंपरा है। पारंपरिक चिकित्‍सा पद्धति कई हज़ारों साल पुरानी हैं और समग्र उपचार दृष्टिकोण पर आधारित है। आयुर्वेद, योग, सिद्ध और यूनानी जैसी पारंपरिक स्वास्थ्य प्रणालियाँ सदियों से चली आ रही हैं। ये सदियों पुरानी चिकित्‍सा प्रणाली आज आधुनिक चिकित्सा पद्धति के साथ ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में देखी जा सकती है। जैसे-जैसे दुनिया तेजी से संधारणीयता और एकीकृत स्वास्थ्य समाधान की ओर उन्‍मुख हो रही है, इन पारंपरिक प्रथाओं का संभावनाएँ बढ़ती जा रही है। इस आलेख में पारंपरिक चिकित्‍सा प्रणाली किस तरह से एक वैकल्पिक चिकित्‍सा के तौर पर उभर रही है, इसे बिन्‍दुवार तथ्‍यात्‍मकता के साथ प्रस्‍तुत किया गया है –

वैकल्पिक स्‍वास्‍थ्‍य उन्‍मुख और निवारक स्वास्थ्य

आयुर्वेद निवारक स्वास्थ्य, व्यक्तिगत संविधान (प्रकृति) और मन, शरीर और आत्मा के बीच संतुलन के आधार पर चिकित्‍सा पद्धति के कारण इसे वैश्विक मान्यता प्राप्त हो रही है। पारंपरिक चिकित्‍सा प्रणाली के अंतर्गत आयुर्वेदिक आहार पद्धति, संतुलित जीवनशैली और हर्बल उपचारों के माध्यम से निवारक समाधान प्रस्‍तुत कर मधुमेह, उच्च रक्तचाप और मोटापे जैसी पुरानी बीमारियों को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

योग को पहले से ही वैश्विक परिदृश्‍य में अपना लिया गया है। योग का प्रयोग तनाव, चिंता और अवसाद जैसे मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों के प्रबंधन में बहुत ही सटीकता के साथ किया जा रहा है। जैसे-जैसे लोगों में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ रही है वैसे-वैसे ध्यान, विश्राम और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में योग की भूमिका बढ़ रही है।

आधुनिक चिकित्सा के साथ एकीकरण

वैश्‍वीकरण की बढ़ती लोकप्रियता के कारण पारंपरिक चिकित्‍सा पद्धति को आधुनिक स्वास्थ्य सेवा के साथ जोड़ने में लोगों और चिकित्‍सकों की रुचि बढ़ रही है। एकीकृत चिकित्सा, जो पारंपरिक पश्चिमी उपचारों को आयुर्वेद या सिद्ध जैसी पूरक चिकित्सा के साथ मिलाती है, रोगी की देखभाल के लिए अधिक समग्र दृष्टिकोण प्रदान करती है। यह दृष्टिकोण तब और लाभकारी हो जाता है जब इस पद्धति के माध्‍यम से पुरानी बीमारी के प्रबंधन, दर्द से राहत और पुनर्वास को समुचित तरीके से संबोधित किया जाता है।

आने वाले समय में जैसे-जैसे पारंपरिक उपचारों और पद्धति का नैदानिक ​​परीक्षण किया जायेगा, उनकी प्रभावशीलता का वैज्ञानिक सत्यापन वैश्विक चिकित्सा समुदाय के समक्ष प्रस्‍तुत होता जायेगा। आयुष मंत्रालय द्वारा इस दिशा में कार्य किया जा रहा है। आधुनिक शोध संस्थायें प्राचीन चिकित्‍सा प्रणाली के चिकित्‍सकों के साथ मिलकर इन पद्धतियों को वैज्ञानिक आधार प्रदान करने में मदद कर सकती है। वैज्ञानिक आधार पर सत्‍यापित होने के बाद इन पद्धतियों पर विश्वसनीयता बढ़ जायेगी और सामान्‍य जनमानस के मध्‍य इसे अपनाने के संबंध कोई व्‍यवधान नहीं रहेगा।

हर्बल और प्राकृतिक उत्पाद बाजार

हर्बल मेडिसिन और न्यूट्रास्युटिकल्स: स्वास्थ्य सेवा में वैश्विक बदलाव के कारण प्राकृतिक और जैविक उत्पादों से संबंधित जड़ी-बूटियों एवं अन्‍य दवाओं के लिए एक बहुत बड़ा बाजार उपलब्‍ध होने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता। हल्दी, अश्वगंधा और त्रिफला जैसे उत्पाद स्वास्थ्य लाभों के लिए पहले से ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय हैं। जैसे-जैसे पौधे-आधारित तथा पर्यावरण के अनुकूल उपचारों की मांग बढ़ेगी हर्बल दवाओं का बाजार भी बढ़ेगा।

वैश्‍वीकरण के इस युग में आज लोग सौंदर्य और व्यक्तिगत देखभाल के लिए प्राकृतिक और आयुर्वेदिक उत्पादों की ओर उन्‍मुख हो रहे हैं। पारंपरिक भारतीय पद्धति से निर्मित हर्बल कॉस्मेटिक्स, तेल और वेलनेस उत्पादों का भविष्य मजबूत दिखाई दे रहा है।

संधारणीयता और समग्र जीवन

आयुर्वेद और सिद्ध जैसी पारंपरिक स्वास्थ्य प्रणाली प्रकृति के साथ सामंजस्य रखकर जीवनयापन करना सिखाती हैं। लोगों में जैसे-जैसे पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ेगी, इन प्रणालियों में प्रयुक्‍त होने वाले प्राकृतिक उपचारों, औषधीय जड़ी-बूटियों के लिए पर्यावरण के अनुकूल कृषि पद्धतियों और जीवनशैली में बदलाव को अपनाकर स्थायी स्वास्थ्य समाधान का मार्ग प्रशस्‍त हो सकता है। यह मार्ग पर्यावरण को होने वाले नुकसान को भी कम करेगा।

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व्यक्तिगत चिकित्सा के लिए आयुर्वेद के अनुसार किसी बीमार व्‍यक्ति का उपचार उसकी शारीरिक, मानसिक एवं आध्‍य‍ात्मिक स्थिति को ध्‍यान में रखकर किया जाना चाहिए। इससे उसका उपचार सटीकता से किया जा सकेगा और उसके समग्र स्‍वास्‍थ्‍य को उपचारित किया जा सकेगा ना कि किसी विशेष बीमारी को। जैसे-जैसे आनुवंशिक अनुसंधान आगे बढ़ेगा, आयुर्वेद के इस व्यक्तिगत दृष्टिकोण को आधुनिक आनुवंशिकी के साथ एकीकृत करने की संभावना भी बढ़ेगी।

ग्रामीण और सार्वजनिक स्वास्थ्य पहल

पारंपरिक स्वास्थ्य पद्धतियाँ भारत की विशाल ग्रामीण जनमानस को सस्ती स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं तक लोगों की पहुँच सीमित होने के कारण, इस वैकल्पिक चिकित्‍सा सुविधा के उपयोग का प्रोत्‍साहित किया जाना चाहिए। पारंपरिक चिकित्सा की लागत-प्रभावशीलता और आधुनिक स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाओं की पहुँच से वंचित क्षेत्रों में इस माध्‍यम से सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों का समाधान किया जा सकता है।
स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा देने के लिए योग और आयुर्वेद जैसी पारंपरिक स्‍वास्‍थ्‍य प्रथाओं को प्राथमिक/माध्‍यमिक शिक्षण कार्यक्रम में शामिल कर सार्वजनिक स्वास्थ्य को सुदृढ़ किया जा सकता है। इससे सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली पर बोझ कम होगा। पारंपरिक स्वास्थ्य पद्धतियाँ बीमारी की रोकथाम के बारे में जागरूकता फैलाने में भी मदद कर सकती हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ आधुनिक चिकित्सा की पहुँच नहीं है।

पर्यटन और सांस्कृतिक आदान-प्रदान

स्वास्थ्य पर्यटन के लिए भारत विश्‍व के पटल पर तेजी से उभर रहा है। भारत स्थित आयुर्वेदिक रिट्रीट, योग केंद्र और प्राकृतिक उपचार रिसॉर्ट दुनिया भर के लोगों के आकर्षण का केन्‍द्र बन रहा है। जैसे-जैसे स्‍वास्‍थ्‍य पर्यटक प्रामाणिक और परिवर्तनकारी स्वास्थ्य का अनुभव करेंगे वैसे-वैसे भारत का पारंपरिक स्वास्थ्य क्षेत्र वैश्विक स्‍वास्‍थ्‍य पर्यटन में एक प्रमुख देश के रूप में विकसित होगा।

विदेशों में पारंपरिक स्वास्थ्य प्रणाली को बढ़ावा देने से भारत की स्थिति को मजबूत किया जा सकता है। कई देश पहले से ही योग और आयुर्वेद जैसी भारतीय पारंपरिक चिकित्‍सा पद्धति में रुचि दिखा रहे हैं। इन स्वास्थ्य परंपराओं को ध्‍यान में रखते हुए वैश्विक स्‍तर पर कार्यक्रम आयोजित करने से अन्‍य देशों से भारत के अंतर्राष्ट्रीय संबंध मजबूत होगे।

सरकारी सहायता और नीतिगत ढांचा

भारत सरकार के आयुष मंत्रालय (आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी) पारंपरिक स्वास्थ्य प्रणाली के प्रचार और मानकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इस चिकित्‍सा प्रणाली हेतु अनुसंधान, शिक्षा और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग हेतु निरंतर सरकारी सहायता द्वारा ही इसके विकास की गति को तीव्र किया जा सकता है। हर्बल उत्पादों और पारंपरिक औषधियों के मानकीकरण से गुणवत्ता नियंत्रण और सुरक्षा सुनिश्चित होगी, जिससे वैश्विक स्तर पर इनकी ग्राह्यता बढ़ेगी। ग्राह्यता बढ़ने से लोगों के मध्‍य पारंपरिक स्वास्थ्य प्रणाली के प्रति विश्वास भी बढ़ेगा।

संक्षेप में, पारंपरिक स्वास्थ्य प्रणाली का भविष्य आशाजनक है, खासकर निवारक स्वास्थ्य, एकीकृत चिकित्सा और वैश्विक स्‍वास्‍थ्‍य पर्यटन के क्षेत्रों में। जैसे-जैसे लोगों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ेगी और स्वास्थ्य सेवा हेतु टिकाऊ एवं समग्र दृष्टिकोण के लिए आयुर्वेद, योग और सिद्ध जैसी प्राचीन प्रणालियों में दिए गए समाधान से स्‍वास्‍थ्‍य की स्थिति अच्‍छी होगी। हालाँकि, इन प्रणालियों का भविष्य वैज्ञानिक मान्यता, आधुनिक चिकित्सा के साथ प्रभावी एकीकरण और अनुसंधान व मानकीकरण हेतु शासकीय समर्थन पर ही निर्भर होगा। अत: इस बात का विशेष ध्‍यान दिया जाना चाहिए कि इनके उत्‍पादों का मानकीकरण और इस क्षेत्र में अनुसंधानों को प्रोत्‍साहित कर पारंपरिक चिकित्‍सा प्रणाली को भविष्‍य का सबसे सशक्‍त चिकित्‍सा प्रणाली में परिवर्तित किया जा सकता है।