बांधवगढ़ मामले में हाई कोर्ट सख्त

बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व की सुरक्षा पर न्यायालय सख्त, वन विभाग को लगाई फटकार

आईबीएन, भोपाल। मध्य प्रदेश के उमरिया जिले में स्थित विश्वविख्यात बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व की सुरक्षा को लेकर जबलपुर उच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। न्यायालय ने रिजर्व की सीमा से 10 किलोमीटर के दायरे में स्थित सभी आरा मशीनों को हटाने के सख्त निर्देश दिए हैं। साथ ही वन विभाग, जिला प्रशासन और पार्क प्रबंधन को आदेशित किया गया है कि वे 90 दिनों के भीतर नियम विरुद्ध संचालित सभी काष्ठ उद्योगों की जांच कर उन्हें बंद करें।

यह फैसला उमरिया निवासी सीमांत रैकवार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के बाद आया, जिसमें उन्होंने शहर के विनायक टाउन क्षेत्र में संचालित एक निजी आरा मशीन से हो रहे प्रदूषण और पर्यावरणीय खतरे को लेकर आपत्ति जताई थी। याचिका में बताया गया था कि संबंधित आरा मशीन न सिर्फ नियमों की अवहेलना कर रही है, बल्कि बाघ संरक्षण क्षेत्र के लिए भी बड़ा खतरा बन रही है।

न्यायालय ने जताई सख्त नाराज़गी
याचिका पर सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय ने वन विभाग की लापरवाही पर सख्त नाराज़गी जताई। अदालत ने स्पष्ट टिप्पणी करते हुए कहा, “आप जंगलों को समाप्त करना चाहते हैं, लेकिन हम ऐसा नहीं होने देंगे।” इस सख्त रुख से स्पष्ट है कि न्यायालय वन्यजीवों और वनों की सुरक्षा को लेकर किसी भी प्रकार की कोताही को सहन नहीं करेगा।

न्यायालय ने यह निर्णय भारत सरकार के 16 नवंबर 2016 के उस नोटिफिकेशन के आधार पर लिया है, जिसमें बाघ संरक्षण क्षेत्रों के 10 किलोमीटर के दायरे में किसी भी प्रकार के प्रदूषणकारी औद्योगिक गतिविधियों को प्रतिबंधित किया गया है। याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता जितेंद्र तिवारी और उनके सहायक रुद्र प्रताप द्विवेदी ने प्रभावी ढंग से पैरवी की।

सिवनी में भी जंगलों पर मंडरा रहा खतरा
इस बीच, सिवनी जिले के उत्तर और दक्षिण वन मंडलों में भी जंगलों की क्षमता से अधिक आरा मशीनें संचालित हो रही हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, भोपाल संरक्षण शाखा के कुछ अधिकारी नई आरा मशीनों को लाइसेंस देने की तैयारी में हैं, जिनमें एक ऐसा मामला भी शामिल है जहां लाइसेंस एक ऐसे व्यक्ति की पत्नी को देने की कोशिश की जा रही है, जिस पर पूर्व में वन अपराध दर्ज हो चुका है।

सिवनी जिले में अवैध कटाई चरम पर है, और केवलारी क्षेत्र के जंगल लगभग खत्म हो चुके हैं। हालात इतने गंभीर हो चुके हैं कि इस मुद्दे की गूंज विधानसभा तक पहुंच चुकी है, लेकिन अब तक केवल निचले स्तर के कर्मचारियों पर कार्रवाई कर लीपापोती की जा रही है, जबकि बड़े अधिकारी बचा लिए गए हैं।

उमरिया से लेकर सिवनी तक फैले इस जंगल संकट के बीच जबलपुर उच्च न्यायालय का यह निर्णय एक उम्मीद की किरण बनकर सामने आया है। यह न केवल बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व की सुरक्षा को मजबूती देगा, बल्कि पूरे प्रदेश में जंगलों की रक्षा के लिए नजीर बन सकता है। आने वाले दिनों में यदि इस निर्णय पर ईमानदारी से अमल हुआ तो मध्य प्रदेश की जैव विविधता को बचाए रखने में यह एक बड़ा मील का पत्थर साबित होगा।