वन सुरक्षा खतरे में व्यंग्यात्मक कार्टून @AI

रेंजर कैडर की उपेक्षा के बीच वन अधिकारियों की फाइव स्टार मौज-मस्ती बनी विवाद का कारण

गणेश पाण्डेय, भोपाल। मध्यप्रदेश में जंगलों की सुरक्षा अब संसाधनहीन होती जा रही है। स्टेट फॉरेस्ट रेंज ऑफिसर्स (राजपत्रित) एसोसिएशन ने वन बल प्रमुख असीम श्रीवास्तव को पत्र लिखकर गंभीर चिंता जताई है कि 31 मई 2025 के बाद वनों की सुरक्षा के लिए अनुबंधित किराये के वाहन हटाए जा रहे हैं।

इस निर्णय का सीधा असर वन सुरक्षा, गश्ती कार्यों और अपराध नियंत्रण पर पड़ा है। बिना वाहन के रेंज अधिकारियों और वनकर्मियों को अब रात में वन अपराधियों का सामना पैदल करना पड़ रहा है। इससे वन माफियाओं को खुला मौका मिल गया है और अपराध दर में वृद्धि की आशंका प्रबल हो गई है।

कैम्पा मद पर बंदिशें, पर खर्च जारी फाइव स्टार होटलों में

कैम्पा (Compensatory Afforestation Fund Management and Planning Authority) मद से वाहन बजट को राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृति नहीं मिलने के कारण यह निर्णय लिया गया है। लेकिन सवाल उठता है कि जब कैम्पा फंड से वन सुरक्षा के लिए पैसे नहीं हैं, तो फाइव स्टार होटलों में कार्यशालाओं और बैठकों पर करोड़ों कैसे खर्च किए जा रहे हैं?

रेंजर कैडर फिर उपेक्षित, वर्षों से लंबित मांगें अनसुनी

रेंजर कैडर लंबे समय से सेवा शर्तों में सुधार, ग्रेड पे और पदोन्नति जैसी मांगों को लेकर संघर्ष कर रहा है। पत्र में बताया गया है कि 1997 में राजपत्रित घोषित होने के बावजूद रेंजर कैडर को आज तक अराजपत्रित कर्मचारी की तरह ट्रीट किया जाता है।

इसके अलावा, अक्सर बिना जांच के निलंबन और विभागीय कार्यवाहियों का शिकार भी यह कैडर होता है। इस उपेक्षा ने न केवल रेंज ऑफिसर्स का मनोबल तोड़ा है, बल्कि वन विभाग की जमीनी व्यवस्था को भी कमजोर किया है।

5स्टार होटल में समीक्षा बैठक

समीक्षा बैठकें या फाइव स्टार ‘मनोरंजन’?

राज्य की वित्तीय हालत कमजोर होने का हवाला हर विभाग देता है, लेकिन वन विभाग के उच्च अधिकारियों की कार्यशालाएं महंगे होटलों में परिवार सहित मौज-मस्ती का जरिया बन गई हैं।

सूत्रों के अनुसार, जबलपुर, इंदौर, ओरछा और अब बांधवगढ़ जैसे पर्यटन स्थलों पर बैठकें रखी गईं, जिनमें न केवल महंगे होटल रूम में ठहराया गया, बल्कि उपहारों का आदान-प्रदान भी हुआ। दिन में औपचारिक बैठकें हुईं और रात्रि में “बौद्धिक चिंतन” के नाम पर भोज और मनोरंजन का आयोजन किया गया।

वीसी की जगह महंगे सम्मलेन, विरोध में उठे स्वर

जब हर विभाग वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से बैठक कर सकता है और राजधानी भोपाल में आलीशान भवन उपलब्ध हैं, तो फिर पर्यटन स्थलों पर लाखों-करोड़ों की फिजूलखर्ची क्यों?

रेंज अफसरों का कहना है कि यदि यही बजट वन गश्ती के लिए आवंटित किया जाता, तो जंगलों में सुरक्षा व्यवस्था दुरुस्त रह सकती थी। लेकिन कुछ रिटायर्ड होने जा रहे अफसरों को ‘सम्मान’ देने के नाम पर इन खर्चों को जायज ठहराया जा रहा है।

ब जंगलों में गश्त कौन करेगा?

किराए के वाहन बंद होने से सवाल उठता है कि अब वन परिक्षेत्राधिकारियों और कर्मचारियों को सुदूर जंगलों में कैसे भेजा जाएगा? कई क्षेत्रों में वन अपराध की सूचनाएं रात के समय मिलती हैं, और ऐसे में तत्काल कार्रवाई करना बिना संसाधन असंभव हो गया है।

सुरक्षा बेमतलब, सुविधाएं सिर्फ अफसरों के लिए?

जहां एक ओर वन्यजीव संरक्षण और पर्यावरण की दुहाई दी जाती है, वहीं नीतिगत असंतुलन और खर्चों की प्राथमिकताएं बताती हैं कि जमीनी अमले की जगह केवल उच्च स्तर के अफसरों की सुविधा पर ध्यान केंद्रित है। यह भविष्य में वन्य अपराध और भ्रष्टाचार दोनों के लिए खतरनाक संकेत हैं।