आईएफएस कमलेश चतुर्वेदीआईएफएस कमलेश चतुर्वेदी

पीसीसीएफ सुदीप सिंह होंगे रिटायर, वाहन खरीदी प्रकरण में सुर्खियों के बाद जैव विविधता बोर्ड में सलाहकार बनने की चर्चा तेज

गणेश पाण्डेय, भोपाल केंद्र सरकार की प्रतिनियुक्ति से लौट रहे 1988 बैच के वरिष्ठ भारतीय वन सेवा (आईएफएस) अधिकारी कमलेश चतुर्वेदी को वन विभाग की विकास शाखा में पीसीसीएफ विकास पद पर एक माह के लिए पदस्थ किए जाने की संभावना है। मौजूदा पीसीसीएफ (विकास) सुदीप सिंह आगामी सोमवार को सेवानिवृत्त हो रहे हैं, जिनकी जगह चतुर्वेदी का नाम प्रस्तावित किया गया है।

सूत्रों के अनुसार, वन विभाग ने कमलेश चतुर्वेदी के नाम का प्रस्ताव राज्य शासन को भेज दिया है, और वे इसी माह भोपाल लौट रहे हैं। यह पदस्थापना संक्रमण कालीन व्यवस्थाओं के तहत मानी जा रही है, क्योंकि चतुर्वेदी की सेवानिवृत्ति भी निकट है।

विकास शाखा में बदलावों की लहर

सिर्फ सुदीप सिंह ही नहीं, विकास शाखा में वर्षों से पदस्थ रहे एसीएफ सीएम पांडेय भी सेवानिवृत्त हो रहे हैं। पांडेय को विभाग के एक ईमानदार और विवादों से दूर रहने वाले अधिकारी के रूप में जाना जाता है। उनकी जगह सीहोर से हटाए गए डीएफओ एमएस डाबर को लाए जाने की चर्चा है। डाबर को केंद्रीय मंत्री की नाराजगी के चलते सीहोर वन मंडल से हटाया गया था।

समन्वय का जिम्मा पी. धीमान को?

सुदीप सिंह के पास विकास के साथ-साथ समन्वय शाखा का प्रभार भी था। उनके रिटायरमेंट के बाद समन्वय की जिम्मेदारी पीसीसीएफ पी. धीमान को सौंपे जाने की संभावना जताई जा रही है।

कई वरिष्ठ अधिकारियों का अंतिम कार्यदिवस

वन विभाग के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों की सेवानिवृत्ति भी इसी महीने हो रही है। इसमें सीएफ संजीव झा, सीएफ रमेश विश्वकर्मा (दोनों वन भवन में पदस्थ) और झाबुआ डीएफओ हरे सिंह का नाम प्रमुख है। इन सभी की सेवा का अंतिम दिन भी सोमवार को ही है।

सुदीप सिंह का ‘प्रशासनिक पुनर्वास’

29 करोड़ रुपये की वाहन खरीदी को लेकर चर्चा में रहे पीसीसीएफ सुदीप सिंह को अब मध्यप्रदेश जैव विविधता बोर्ड का सलाहकार बनाए जाने की संभावना है। वन बल प्रमुख असीम श्रीवास्तव की सिफारिश पर यह नियुक्ति हो सकती है।

यह भी गौरतलब है कि पीसीसीएफ यूके सुबुद्धि, जो सुदीप सिंह से पहले विकास शाखा में पदस्थ थे, रिटायरमेंट के बाद वन विकास निगम में सलाहकार बनाए गए थे। वाहन खरीदी की पहली किश्त सुबुद्धि के कार्यकाल में ही की गई थी, जिससे यह संकेत मिलता है कि विभागीय परंपरा के अनुरूप सेवानिवृत्त अधिकारियों को सलाहकार के रूप में ‘पुनर्वास’ दिए जाने का चलन बना हुआ है।