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गणेश पाण्डेय, भोपाल। मध्यप्रदेश में वनाधिकार कानून 2006 के तहत आदिवासी समुदायों को वन संसाधनों पर अधिकार देने की प्रक्रिया अतिक्रमण और प्रशासनिक उलझनों के चलते गंभीर चुनौती बन गई है। ताजा जानकारी के अनुसार, प्रदेश में लगभग 700 हैक्टेयर वनभूमि पर अवैध अतिक्रमण हो चुका है। यह तथ्य वन मुख्यालय भोपाल द्वारा राजभवन के जनजातीय प्रकोष्ठ को भेजी गई एक आधिकारिक रिपोर्ट में सामने आया है।

सूत्रों के अनुसार, केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के हस्तक्षेप के बाद अतिक्रमणकारियों के हौसले इस कदर बुलंद हो गए हैं कि अब वे निर्भीक होकर जंगलों में कटाई का कार्य कर रहे हैं। वन मुख्यालय ने स्पष्ट किया है कि जब तक अतिक्रमण हटाया नहीं जाता, तब तक सामुदायिक वन संसाधन संरक्षण एवं प्रबंधन के अधिकार देने पर कोई विचार नहीं किया जाएगा।

वनाधिकार कानून का अधूरा अमल

वनाधिकार कानून 2006 के अंतर्गत आदिवासी समुदायों को न केवल वन भूमि पर कब्जा प्रमाणित कर पट्टे देने का प्रावधान है, बल्कि उन्हें सामुदायिक वन संसाधनों — जैसे लकड़ी, वनोपज और वृक्षों के उपयोग — पर भी अधिकार दिया जाना चाहिए।

राज्य सरकार ने अब तक—

  • 5,92,304.674 हैक्टेयर वनभूमि पर 26,347 सामुदायिक वन अधिकार स्वीकृत किए हैं, जिनमें श्मशान, हाट-बाजार, गोठान, धार्मिक स्थल, खेल मैदान आदि शामिल हैं।
  • 6,921 लघु वनोपज संग्रहण अधिकार भी आदिवासी समुदायों को दिए गए हैं।

लेकिन अब तक आदिवासियों को वन संसाधनों विशेषकर वृक्षों की कटाई एवं व्यापारिक उपयोग पर कोई अधिकार प्रदान नहीं किए गए हैं, जिससे उनका मुख्य और परंपरागत संसाधन प्रभावित और सीमित हो रहा है।

राजभवन का रुख और वन विभाग की शर्तें

राजभवन के जनजातीय प्रकोष्ठ ने वन मुख्यालय से आग्रह किया था कि कानून के तहत सामुदायिक वन संसाधन अधिकारों को अमल में लाया जाए। इन अधिकारों के अंतर्गत ग्रामीण समुदायों को जंगलों के संरक्षण और उनके संसाधनों के सतत उपयोग का अधिकार भी मिलना चाहिए।

लेकिन वन मुख्यालय ने स्पष्ट कर दिया है कि जब तक अतिक्रमण पूरी तरह से नहीं हटाया जाता, तब तक सामुदायिक संसाधन अधिकारों की मंजूरी संभव नहीं है। विभाग के अनुसार, यह कदम वनों की रक्षा और कानून के सही क्रियान्वयन की दिशा में आवश्यक है।

राजस्व ग्राम में परिवर्तन की अधिसूचना जारी

वनग्रामों को राजस्व ग्राम में बदलने की प्रक्रिया भी राज्य सरकार ने तेज कर दी है। प्रदेश के 792 वनग्रामों को राजस्व ग्राम में परिवर्तित करने की अधिसूचनाएं संबंधित कलेक्टरों द्वारा जारी कर दी गई हैं।

  • इन ग्रामों में अब सर्वेक्षण और डिजिटाइजेशन का कार्य किया जा रहा है।
  • यह कार्य प्रदेश स्तरीय प्रशासनिक निगरानी में संपन्न हो रहा है।

राजस्व ग्राम में परिवर्तन से आदिवासी समुदायों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने की संभावना बढ़ेगी, लेकिन संसाधनों पर अधिकार न मिलने से उनकी आजीविका और पारंपरिक संरचना प्रभावित हो सकती है।

विश्लेषण: अतिक्रमण बनाम अधिकार

इस पूरे घटनाक्रम में एक जटिल द्वंद्व उभर कर सामने आया है—एक ओर आदिवासियों को उनके ऐतिहासिक और कानूनी अधिकार देने की मांग है, तो दूसरी ओर जंगलों पर बढ़ते अतिक्रमण और कटाई गतिविधियों ने वन विभाग को सख्त रुख अपनाने पर विवश कर दिया है।

वन विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सामुदायिक वन अधिकार संरक्षण और निगरानी की जिम्मेदारी के साथ दिए जाएं, तो न केवल वनों की रक्षा की जा सकती है, बल्कि आदिवासी समुदायों की भागीदारी भी सुनिश्चित की जा सकती है।

राज्य सरकार द्वारा वनभूमि के पट्टे और सीमित सामुदायिक अधिकार देने के बावजूद वन संसाधनों पर पूर्ण अधिकार अब भी अधर में हैं। यदि अतिक्रमण की चुनौती का समाधान नहीं हुआ, तो वनाधिकार कानून का मुख्य उद्देश्य — आदिवासी स्वायत्तता और सतत विकास — अधूरा ही रह जाएगा।