Halchath

हलछठ का त्योहार भारतीय ग्रामीण संस्कृति और धार्मिक आस्था का प्रतीक है। यह पर्व माताओं के लिए अपनी संतान के प्रति अपने स्नेह और समर्पण को व्यक्त करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। हलछठ का व्रत और पूजा न केवल संतान की लंबी उम्र और खुशहाली की कामना के लिए है, बल्कि यह पर्व हमारी सांस्कृतिक धरोहर और पारंपरिक मूल्यों की अभिव्यक्ति भी है।

आईबीएन, डेस्क। ‘हलछठ’, जिसे ‘ललई छठ’ या ‘हरछठ’ भी कहा जाता है, उत्तर भारत के विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं अपनी संतान की लंबी आयु और स्वास्थ्य के लिए उपवास रखती हैं और विशेष पूजा-अर्चना करती हैं।

हलछठ का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

हलछठ का पर्व मुख्यतः भगवान बलराम की पूजा से जुड़ा है। बलराम जी, जिन्हें भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई और कृषि के देवता के रूप में पूजा जाता है, का मुख्य हथियार हल है। इस कारण से इस पर्व को हलछठ कहा जाता है। यह पर्व माताओं के लिए विशेष महत्व रखता है, क्योंकि इस दिन वे अपने पुत्रों की सलामती और दीर्घायु की कामना करती हैं।

Lord Balram

व्रत और पूजा विधि

हलछठ के दिन प्रातःकाल स्नान करके महिलाएं व्रत का संकल्प लेती हैं। इस व्रत में भोजन के लिए हल से जुड़े अनाज का उपयोग वर्जित होता है। महिलाएं इस दिन विशेष रूप से ‘सांवा का चावल’, ‘तिल’, ‘मक्खन’, ‘दही’ और ‘फलों’ का सेवन करती हैं।

पूजा की विधि में बलराम जी की प्रतिमा या चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलित किया जाता है और सात प्रकार के अनाज (गेहूं, चना, जौ, मक्का, मूंग, चावल, और बाजरा) से बने पकवान का भोग लगाया जाता है। साथ ही, हल और बैल की पूजा की जाती है और उनके प्रतीक स्वरूप मिट्टी के हल और बैल को रखा जाता है।

लोक कथाएँ और मान्यताएँ

हलछठ से जुड़ी कई लोक कथाएँ प्रचलित हैं। इनमें से एक कथा के अनुसार, इस दिन भगवान बलराम का जन्म हुआ था। उनके जन्म के समय उनकी माता रोहिणी ने भी इस व्रत का पालन किया था, जिससे उन्हें स्वस्थ और बलशाली संतान की प्राप्ति हुई। इसी कारण, इस व्रत को संतान की सुरक्षा और उनके लंबे जीवन के लिए शुभ माना जाता है।

विशेष नियम और परंपराएँ

  • हल से जुड़ी वस्तुओं का परहेज: इस दिन हल से जुड़ी फसलों का सेवन नहीं किया जाता।
  • निर्जला व्रत: कई महिलाएं इस दिन निर्जला व्रत रखती हैं, जबकि कुछ स्थानों पर फलाहार की अनुमति होती है।
  • रात्रि जागरण: कुछ स्थानों पर महिलाएं रात को जागरण कर बलराम जी की कहानियाँ सुनती हैं और भजन-कीर्तन करती हैं।

सामाजिक और पारिवारिक महत्व

हलछठ का पर्व न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से, बल्कि सामाजिक और पारिवारिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यह पर्व मातृत्व के सम्मान और परिवार में संतान के महत्व को रेखांकित करता है। इसके अलावा, यह पर्व ग्रामीण जीवन और कृषि संस्कृति के प्रति हमारे जुड़ाव को भी दर्शाता है।