आईबीएन, जबलपुर। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय में संविदा कर्मचारियों को उनकी निर्धारित सेवा अवधि समाप्त होने के बाद हटाने को उचित ठहराया। कोर्ट ने इसे प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन मानने से इंकार किया, जिससे राज्य सरकार को महत्वपूर्ण कानूनी जीत प्राप्त हुई है।
हाईकोर्ट के कार्यवाहक चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की युगलपीठ ने आदेश में कहा कि यदि संविदा कर्मचारी की सेवा समाप्ति का आदेश कलंकपूर्ण या दंडात्मक नहीं है, तो उन्हें सेवा समाप्ति के खिलाफ सुरक्षा का दावा नहीं कर सकते हैं। राज्य सरकार की अपील पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने स्पष्ट किया कि संविदा कर्मचारियों को उनकी नियुक्ति की निर्धारित अवधि के बाद हटाना प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन नहीं है।
राज्य सरकार ने अपनी अपील में बताया कि सामान्य प्रशासन और वित्त विभाग ने मध्य प्रदेश में डाटा एंट्री के 50 पदों के लिए दो साल की संविदा नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी किया था। याचिकाकर्ताओं ने आवेदन किया और सफल हुए। 2011 में 50 पदों पर संविदा नियुक्ति प्रदान की गई थी, और 2013 में सभी कर्मचारियों की संविदा अवधि दो साल तक बढ़ा दी गई थी। हालांकि, 2016 में केवल 21 कर्मचारियों की सेवा अवधि बढ़ाने का आदेश जारी किया गया था।
2018 में, आयुक्त योजना एवं सांख्यिकी विभाग ने सभी संविदा नियुक्तियों की समाप्ति के आदेश जारी किए थे। इस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी, जिसमें कोर्ट ने कहा था कि संविदा नियुक्तियों को निरस्त करने से पहले याचिकाकर्ताओं को सुनवाई का अवसर प्रदान किया जाना चाहिए था। कोर्ट ने उस आदेश को खारिज करते हुए याचिकाकर्ताओं को सुनवाई का अवसर देने का आदेश दिया था। राज्य सरकार ने इस आदेश के खिलाफ अपील दायर की, और युगलपीठ ने राज्य सरकार की अपील को स्वीकार करते हुए एकलपीठ के आदेश को निरस्त कर दिया।