मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने महेश्वर क़िले में किया शस्त्र-पूजन और गौशाला में किया गौ-पूजन
देवी अहिल्याबाई होल्कर को श्रद्धांजलि अर्पित, नर्मदा तट पर विजयादशमी के मौके पर शौर्य की प्रतीक तलवार का पूजन
आईबीएन, महेश्वर/इंदौर। विजयादशमी के पावन अवसर पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने महेश्वर के ऐतिहासिक क़िले में लोकमाता देवी अहिल्याबाई होल्कर को माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि दी। उन्होंने महेश्वर के शस्त्रागार में देवी अहिल्या द्वारा धारण की गई तलवार का विशेष रूप से पूजन किया, जिसे शौर्य और पराक्रम का प्रतीक माना जाता है। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने कहा कि देवी अहिल्या बाई पुण्य और परोपकार की प्रतीक हैं, और उनकी कर्मभूमि पर आकर नमन करना गर्व का क्षण है। महेश्वर के क़िले में मुख्यमंत्री का परंपरागत अभिनंदन देवी अहिल्याबाई के वंशज यशवंतराव होल्कर तृतीय ने किया। कार्यक्रम में खरगोन जिले के स्थानीय जनप्रतिनिधि भी उपस्थित रहे।

विजयादशमी के पावन अवसर पर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने महेश्वर के ऐतिहासिक किले में शस्त्र-पूजन करते हुए इसे हमारी प्राचीन परंपरा का हिस्सा बताया। उन्होंने कहा कि शस्त्र आत्मरक्षा और अन्याय के खिलाफ जंग का प्रतीक हैं और इनके बल पर ही धर्म और देश की रक्षा की जा सकती है। मुख्यमंत्री ने महेश्वर में लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर की कर्मभूमि पर विजयादशमी के विशेष महत्व पर प्रकाश डाला।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने महेश्वर में इंडस्ट्रियल बेल्ट और टूरिज्म विलेज विकसित करने की घोषणा की। साथ ही “अहिल्या लोक” के निर्माण की भी योजना बनाई गई है। मुख्यमंत्री ने अवैध शस्त्र जब्त करने वाले सब इंस्पेक्टर को 31 हजार रुपये की प्रोत्साहन राशि देने और भक्तिपूर्ण माहौल के लिए भजन मंडली को एक लाख रुपये देने की घोषणा भी की।
मुख्यमंत्री ने अपने संबोधन में देवी अहिल्याबाई के सिद्धांतों को याद करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास के सिद्धांत पर काम कर रहे हैं। उन्होंने महेश्वर क्षेत्र में 83 करोड़ 20 लाख रुपये की लागत से 43 विकास कार्यों का लोकार्पण और भूमिपूजन भी किया।

गौशाला भी गए सीएम मोहन
इसके बाद, मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने महेश्वर में माँ भागवत रेवा गौशाला में गौ-पूजन किया। उन्होंने गौ माता को गुड़ के लड्डू और गौ ग्रास खिलाकर श्रद्धा प्रकट की। इस गौशाला की स्थापना 2003 में की गई थी, और इसमें वर्तमान में 126 गौवंश हैं। गौशाला संचालक समिति के अनुसार, दुधारू गायों से प्राप्त दूध का विक्रय कर इसे स्वावलंबी बनाने का प्रयास किया जा रहा है।
