संतों के बीच हाथापाई तक पहुंची बात

आईबीएन, प्रयागराज। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के दो धड़ों में भूमि आवंटन को लेकर चल रहा विवाद बृहस्पतिवार को उस समय गंभीर रूप ले लिया, जब संतों के बीच कहासुनी के बाद हाथापाई हो गई। यह घटना प्रयागराज के दारागंज क्षेत्र में हुई, जहाँ दोनों धड़ों ने अलग-अलग स्थानों पर बैठकें आयोजित की थीं। पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी में परिषद के अध्यक्ष रविंद्रपुरी की अध्यक्षता में एक बैठक हो रही थी, जबकि कुछ ही दूरी पर श्री पंचायती अखाड़ा निर्मोही में महंत राजेंद्र दास की अध्यक्षता में दूसरी बैठक का आयोजन किया गया था। इन बैठकों के दौरान संतों के बीच कहासुनी शुरू हुई, जो जल्दी ही हिंसक झड़प में बदल गई। इस घटना से वहां पर मौजूद लोगों में भय का माहौल बन गया और काफी देर तक अफरातफरी मची रही।

मेला कार्यालय में हुआ विवाद

कुम्भ मेला कार्यालय में संतो के बीच कहासुनी

घटना की शुरुआत तब हुई जब दोनों धड़ों के संत प्रयागराज मेला प्राधिकरण कार्यालय पहुंचे थे। महाकुंभ 2025 के आयोजन से पहले संतों के लिए भूमि आवंटन की मांग को लेकर वे वहां जमा हुए थे। इसी दौरान, निर्मोही अखाड़े के महंत राजेंद्र दास और कुछ अन्य संतों के बीच कहासुनी हो गई। स्थिति इतनी बिगड़ गई कि संतों के बीच हाथापाई शुरू हो गई। जूना अखाड़े के संरक्षक और अखाड़ा परिषद के महामंत्री हरि गिरि ने तत्काल मौके पर पहुंचकर मामले को शांत कराने का प्रयास किया और स्थिति को नियंत्रण में लाया।

अखाड़ा परिषद अध्यक्ष पद पर लंबे समय से चल रही खींचतान

बैठक के लिए मेला कार्यालय पहुंचे संत

अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष पद को लेकर दोनों धड़ों में विवाद लंबे समय से चल रहा है। संतों के एक समूह ने अध्यक्ष रवींद्र गिरि के नेतृत्व को चुनौती देते हुए, उनके अधिकारों को मानने से इनकार कर दिया है। इस खींचतान के चलते दोनों गुट संत समाज के बड़े हिस्से को अपने पक्ष में करने की कोशिश में लगे हैं। इस संघर्ष में दूसरे धड़े ने बुधवार को शाही स्नान और पेशवाई जैसे मुगलकालीन शब्दों को बदलने की घोषणा कर दी। नए नामकरण के अनुसार, अब “शाही स्नान” को “कुंभ अमृत स्नान” और “पेशवाई” को “कुंभ छावनी प्रवेश” के नाम से जाना जाएगा।

संत समाज में गहराता विवाद

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संत समाज के बीच आपसी मतभेद और अधिकारों को लेकर चल रही इस खींचतान ने महाकुंभ 2025 के आयोजन को लेकर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। यह विवाद न केवल अखाड़ों के बीच फूट को दिखाता है, बल्कि इससे महाकुंभ की तैयारियों और व्यवस्थाओं पर भी प्रभाव पड़ने की आशंका है। श्रद्धालुओं के लिए कुंभ जैसे धार्मिक आयोजनों में अखाड़ों का प्रमुख योगदान होता है, लेकिन अगर यह विवाद ऐसे ही चलता रहा तो आयोजन के दौरान व्यवस्थाओं पर भी इसका असर पड़ सकता है।