वन विभाग में प्रभार का खेल

गणेश पाण्डेय, भोपाल। मध्यप्रदेश वन विभाग में एक बार फिर आंतरिक खींचतान सतह पर आ गई है। एसीएस (वन) अशोक वर्णवाल के ‘ब्लू आई’ माने जा रहे अधिकारी डॉ. संजय शर्मा को कारण बताओ नोटिस जारी करना लघु वनोपज संघ के प्रबंध संचालक (एमडी) विभाष ठाकुर को महंगा पड़ गया। शासन ने वरिष्ठ आईएफएस अधिकारी ठाकुर को एमडी के पद से हटाकर comparatively जूनियर माने जाने वाले पीसीसीएफ (संरक्षण) के पद पर पदस्थ कर दिया है।

सूत्रों के अनुसार 1990 बैच के आईएफएस विभाष ठाकुर ने हाल ही में प्रसंस्करण केंद्र में डॉ. संजय शर्मा को कारण बताओ नोटिस जारी किया था। माना जा रहा है कि यही कार्रवाई उनकी पदावनति की मुख्य वजह बनी। इससे पहले भी जब पीसीसीएफ (प्रशासन-1) विवेक जैन ने सीईओ, प्रसंस्करण केंद्र के रूप में कार्य करते हुए डॉ. शर्मा की सेवाएं समाप्त करने का आदेश जारी किया था, तो उन्हें भी तत्काल उस पद से हटा दिया गया था।

वन विभाग में यह परंपरा रही है कि वन बल प्रमुख के बाद आईएफएस कैडर में सबसे वरिष्ठ पद एमडी, वन विकास निगम का होता है। इस लिहाज से विभाष ठाकुर विभाग के शीर्षस्थ पदों में गिने जाते थे। लेकिन वर्तमान घटनाक्रम में उनकी वरिष्ठता को नजरअंदाज करते हुए पीसीसीएफ (संरक्षण) के पद पर भेजा गया है, जो कैडर में वरिष्ठता के क्रम में पांचवें स्थान पर आता है। विभागीय हलकों में इसे ठाकुर की साख और कार्यशैली को प्रभावित करने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।

एपीआर व्यवस्था में भी उलटफेर

वन विभाग में हाल ही में पीसीसीएफ स्तर के अधिकारियों के फेरबदल के दौरान एसीएस वर्णवाल ने शासन के एपीआर (वार्षिक मूल्यांकन रिपोर्ट) संबंधी स्पष्ट आदेशों की भी अनदेखी कर दी है। संशोधित गाइडलाइन के अनुसार CF अथवा CCF की एपीआर अपर प्रधान मुख्य संरक्षक (विकास) को लिखनी है, जिसकी समीक्षा पीसीसीएफ (वर्किंग प्लान) द्वारा की जानी चाहिए।

लेकिन हालिया पदस्थापना में 1992 बैच के आईएफएस पुरुषोत्तम धीमान को विकास शाखा में पदस्थ किया गया है। अब उनकी एपीआर वरिष्ठ अधिकारी के बजाय 1993 बैच के आईएफएस मनोज अग्रवाल, जो पीसीसीएफ (वर्किंग प्लान) के अतिरिक्त प्रभार में हैं, द्वारा समीक्षा की जाएगी। यह स्पष्ट तौर पर एपीआर की प्रक्रिया में वरिष्ठता के सिद्धांत का उल्लंघन है।

विभागीय सूत्रों का कहना है कि एसीएस वर्णवाल ने मनोज अग्रवाल को न केवल महत्वपूर्ण ‘कैंपा’ शाखा, जिसमें 1100 करोड़ रुपये का वार्षिक बजट है, का प्रभारी बनाया है बल्कि अब फील्ड के आईएफएस अधिकारियों की एपीआर पर अप्रत्यक्ष नियंत्रण भी दे दिया है। यह व्यवस्था विभाग में असंतोष का कारण बन रही है।

अंदरूनी खींचतान बढ़ने के आसार

वन विभाग में लंबे समय से अधिकारियों के बीच गुटबाजी और एसीएस स्तर से मनपसंद अधिकारियों को तरजीह दिए जाने के आरोप लगते रहे हैं। इस घटनाक्रम से एक बार फिर यह धारणा मजबूत हुई है कि विभागीय निर्णय पारदर्शिता और वरिष्ठता के आधार पर नहीं, बल्कि व्यक्तिगत पसंद-नापसंद से प्रभावित हो रहे हैं। विभाष ठाकुर की वरिष्ठता को दरकिनार कर उनकी पदावनति और एपीआर प्रक्रिया में बदलाव को लेकर विभाग के कई वरिष्ठ अधिकारी असंतुष्ट हैं। आने वाले समय में यह मसला विभागीय बैठकों और कैडर रिव्यू में बड़ा मुद्दा बन सकता है।