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चंद्रकेतु मिश्रा, प्रयागराज।

शारदीय नवरात्र भारतीय संस्कृति का वह महापर्व है जो शक्ति, साधना और आस्था का अद्वितीय संगम माना जाता है। अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होकर नवमी तक चलने वाला यह पर्व नौ दिनों तक भक्तों को आत्मबल, संयम और भक्ति का विशेष अवसर प्रदान करता है। नवरात्र केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है बल्कि यह हमारे जीवन में सत्य, धर्म और साहस की विजय का प्रतीक बनकर आता है। देवी महात्म्य और मार्कण्डेय पुराण में वर्णित कथा के अनुसार महिषासुर नामक असुर ने देवताओं को पराजित कर त्रैलोक्य में अत्याचार फैलाया था। तब देवताओं की शक्तियों से आदिशक्ति दुर्गा का प्राकट्य हुआ और उन्होंने नौ दिनों तक चले युद्ध के बाद महिषासुर का वध किया। यह कथा हमें प्रेरित करती है कि चाहे अन्याय कितना भी प्रबल क्यों न हो, सत्य और धर्म की विजय निश्चित है। इसी प्रकार रामायण में भी उल्लेख मिलता है कि भगवान श्रीराम ने रावण पर विजय प्राप्त करने से पूर्व नवरात्र में देवी दुर्गा की उपासना की और उनके आशीर्वाद से ही लंका विजय का मार्ग प्रशस्त हुआ। इसका अर्थ है कि किसी भी बड़ी सफलता के लिए शक्ति और भक्ति का संतुलन आवश्यक है।

नवरात्र के नौ दिन जीवन के नौ मूल्यों की शिक्षा देते हैं। प्रथम दिन शैलपुत्री हमें स्थिरता और धैर्य का पाठ पढ़ाती हैं, ब्रह्मचारिणी तप और संयम का संदेश देती हैं, चंद्रघंटा साहस और निर्भयता का प्रतीक हैं, कूष्मांडा सृजन और ऊर्जा का स्रोत हैं, स्कंदमाता मातृत्व और करुणा का भाव जगाती हैं, कात्यायनी शक्ति और साहस का संचार करती हैं, कालरात्रि भय को नष्ट कर निर्भयता का मार्ग प्रशस्त करती हैं, महागौरी शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक हैं और सिद्धिदात्री सिद्धि व पूर्णता का आशीर्वाद देती हैं। जब भक्त नौ दिनों में इन स्वरूपों की उपासना करते हैं तो वे केवल देवी की आराधना ही नहीं करते बल्कि अपने जीवन को भी इन मूल्यों से जोड़ते हैं।

नवरात्र में उपवास का महत्व केवल आहार में संयम तक सीमित नहीं है। इसका वास्तविक अर्थ है मन और इंद्रियों पर नियंत्रण। फलाहार और सात्त्विक भोजन, अखंड ज्योति का प्रज्वलन और प्रातःकालीन ध्यान साधक के भीतर आत्मशक्ति और आत्मविश्वास का संचार करता है। यह पर्व हमें यह भी सिखाता है कि जैसे दीपक अंधकार को दूर करता है वैसे ही भक्ति और साधना जीवन के सभी अंधकार को मिटा सकते हैं।

भारत की सांस्कृतिक विविधता में नवरात्र एकता का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करता है। बंगाल में यह दुर्गा पूजा के रूप में भव्य पंडालों और प्रतिमाओं के साथ मनाया जाता है। गुजरात और राजस्थान में डांडिया और गरबा इसकी रौनक बढ़ाते हैं। उत्तर भारत में रामलीला और दशहरे के साथ नवरात्र का महत्व और गहरा हो जाता है। गाँव से लेकर शहर तक, मंदिर से लेकर पंडाल तक, इन नौ दिनों में वातावरण भक्ति, उत्साह और उमंग से गूंज उठता है।

आज के समय में जब समाज अनेक चुनौतियों और तनावों से जूझ रहा है, तब नवरात्र का संदेश और भी प्रासंगिक हो जाता है। यह हमें याद दिलाता है कि असली शक्ति हमारे भीतर ही है। जिस प्रकार दुर्गा ने महिषासुर जैसे बलशाली असुर का वध किया, उसी प्रकार हम भी अपने भीतर छिपे भय, आलस्य, लोभ और ईर्ष्या जैसे विकारों का नाश कर सकते हैं। नवरात्र हमें यह प्रेरणा देता है कि जीवन की कठिनाइयों का सामना साहस, संयम और भक्ति के साथ किया जाए तो सफलता निश्चित मिलती है।

शारदीय नवरात्र वास्तव में केवल धार्मिक पर्व नहीं बल्कि जीवन का दर्शन है। यह हमें सिखाता है कि धर्म और सत्य की राह चाहे कठिन हो, परंतु अंततः वही विजयी होती है। इस पावन अवसर पर माँ दुर्गा से यही प्रार्थना है कि वे सबको शक्ति, शांति, समृद्धि और आरोग्य का वरदान दें, जीवन में नई ऊर्जा और उत्साह का संचार करें और हर घर में भक्ति व आनंद का वातावरण स्थापित करें।

शारदीय नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ।