अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एच-1बी वीजा की फीस में की बेतहाशा वृद्धि, 21 सितंबर से लागू होंगे नए नियम, भारत सरकार ने जताई चिंता
आईबीएन, नई दिल्ली/वॉशिंगटन। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सोमवार को एच-1बी वीजा को लेकर एक बड़ा और विवादित फैसला लिया है। आदेश के मुताबिक अब इस वीजा की फीस 1 लाख डॉलर (करीब 88 लाख रुपये) कर दी गई है। यह नया नियम 21 सितंबर से लागू हो जाएगा। इस फैसले का सीधा असर उन लाखों भारतीय आईटी पेशेवरों पर पड़ सकता है, जो अमेरिका में काम करने के लिए हर साल इस वीजा पर आवेदन करते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनियों और अमेरिका में काम करने वाले युवाओं दोनों के लिए एक बड़ा झटका है।
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने बयान में कहा कि उनकी सरकार का उद्देश्य अमेरिकी नौकरियों की रक्षा करना है। उन्होंने कहा, “अमेरिका अमेरिकियों के लिए है। हम विदेशी कंपनियों को हमारे लोगों की नौकरियां हड़पने की इजाजत नहीं देंगे। एच-1बी वीजा के दुरुपयोग को रोकना और अमेरिकी नागरिकों को प्राथमिकता देना हमारी सरकार की शीर्ष प्राथमिकता है।”
ट्रंप ने आगे कहा कि अमेरिकी कंपनियां कम लागत पर विदेशी कर्मचारियों को रखकर स्थानीय कर्मचारियों की नौकरियां छीन रही हैं, जिसे अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उन्होंने इसे “अमेरिकी हितों की रक्षा” से जोड़ते हुए बताया कि यह कदम अमेरिकी जनता के लिए उठाया गया है।
भारत पर असर
इस फैसले का सबसे बड़ा असर भारत पर पड़ने वाला है। भारत दुनिया में एच-1बी वीजा का सबसे बड़ा लाभार्थी देश है। हर साल अमेरिका द्वारा जारी किए जाने वाले एच-1बी वीजा में 60-70 प्रतिशत भारतीयों को ही मिलता है। इसका सबसे ज्यादा फायदा भारतीय आईटी कंपनियों और टेक्नोलॉजी पेशेवरों को मिलता रहा है।
फीस में अचानक भारी बढ़ोतरी के कारण छोटे और मध्यम स्तर की कंपनियों के लिए अमेरिका में अपने कर्मचारियों को भेजना लगभग नामुमकिन हो जाएगा। विशेषज्ञों के मुताबिक, इससे भारत से अमेरिका जाने वाले पेशेवरों की संख्या में भारी कमी आ सकती है।
आईटी उद्योग से जुड़े संगठनों ने कहा कि यह फैसला भारतीय आईटी सेक्टर की लागत को कई गुना बढ़ा देगा। इससे भारत के निर्यात कारोबार पर असर पड़ सकता है और अमेरिका में भारतीय आईटी कंपनियों की प्रतिस्पर्धा कम हो जाएगी।
भारत की प्रतिक्रिया
भारत सरकार ने ट्रंप प्रशासन के इस कदम पर चिंता जताई है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, “भारत और अमेरिका के बीच एच-1बी वीजा केवल एक रोजगार का मुद्दा नहीं, बल्कि दोनों देशों की अर्थव्यवस्था और तकनीकी सहयोग की रीढ़ है। इस तरह के फैसले न केवल भारतीय पेशेवरों को प्रभावित करेंगे, बल्कि अमेरिकी कंपनियों और वहां की अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचाएंगे।”
वाणिज्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि भारत जल्द ही इस मुद्दे को कूटनीतिक स्तर पर उठाएगा। उनका कहना है कि आईटी सेक्टर भारतीय अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा है और अमेरिका में हमारी कंपनियों की मौजूदगी से वहां की कंपनियों और उपभोक्ताओं दोनों को फायदा होता है।
विशेषज्ञों की राय
आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम भारतीय युवाओं के लिए अमेरिका जाने का सपना तोड़ सकता है। कई वर्षों से भारतीय इंजीनियर, डॉक्टर, आईटी प्रोफेशनल्स और रिसर्चर एच-1बी वीजा के जरिए अमेरिका में अपनी जगह बना रहे थे। अब इतनी ज्यादा फीस भरना अधिकांश लोगों के लिए संभव नहीं होगा।
इन्फोसिस, टीसीएस और विप्रो जैसी भारतीय आईटी दिग्गज कंपनियां पहले ही अमेरिकी बाजार पर काफी निर्भर हैं। ऐसे में उन्हें या तो अपने कर्मचारियों को अमेरिका भेजने की लागत उठानी होगी या फिर वहां स्थानीय अमेरिकी कर्मचारियों की भर्ती करनी होगी, जिससे खर्च और भी बढ़ जाएगा।
अमेरिकी कंपनियों पर असर
यह सिर्फ भारतीयों के लिए ही चुनौती नहीं है, बल्कि अमेरिकी कंपनियों के लिए भी मुश्किलें खड़ी कर सकता है। सिलिकॉन वैली की कई टेक्नोलॉजी कंपनियां भारतीय सॉफ्टवेयर इंजीनियरों और आईटी विशेषज्ञों पर निर्भर हैं। वहां के उद्योग संगठनों ने भी चिंता जताई है कि इससे अमेरिकी कंपनियों की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता प्रभावित होगी।
राजनीतिक संदेश
ट्रंप का यह फैसला अमेरिकी चुनावी राजनीति से भी जुड़ा माना जा रहा है। ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति के तहत वह लगातार विदेशी नागरिकों को मिलने वाले अवसरों को सीमित करने की कोशिश कर रहे हैं। विश्लेषकों का मानना है कि इस फैसले से ट्रंप घरेलू वोटरों को संदेश देना चाहते हैं कि उनकी सरकार अमेरिकी नौकरियों की रक्षा के लिए सख्त कदम उठा रही है।
ट्रंप का यह कदम भारत और अमेरिका के रिश्तों में एक नई चुनौती पैदा कर सकता है। जहां एक ओर यह फैसला भारतीय आईटी कंपनियों और पेशेवरों के लिए झटका है, वहीं दूसरी ओर अमेरिकी कंपनियों को भी अपने संचालन में कठिनाई का सामना करना पड़ेगा। भारत सरकार ने कूटनीतिक स्तर पर इस मुद्दे को उठाने के संकेत दिए हैं। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि दोनों देशों के बीच इस विवाद का समाधान किस तरह निकलता है।
