CAA

आईबीएन, डेस्क, नई दिल्ली। संसद से पारित होने के चार साल से अधिक समय बाद आखिरकार नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) से जुड़े नियम लागू हो गए हैं। केंद्र सरकार ने इस बाबत अधिसूचना भी जारी कर दी। CAA के जरिए पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई समुदायों से संबंधित अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता लेने में आसानी होगी। हम इस खबर में आपको बताएंगे की सरकार द्वारा जारी सीएए के नियमों में क्या क्या है….

ये हैं नियम

गौरतलब है कि नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए गैर-दस्तावेज गैर-मुस्लिम प्रवासियों को भारत की राष्ट्रीयता देने के लिए लाया गया है। गैर मुस्लिम प्रवासियों में हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई हैं।

करना होगा ऑनलाइन आवेदन
भारत में नागरिकता की मांग करने के लिए ऑनलाइन आवेदन करना होगा। इसमें आवेदक को बताना होगा कि वे भारत में कब से रह रहे हैं। केंद्र द्वारा जारी अधिसूचना में बताया गया है कि सीएए के तहत भारत की नागरिकता की मांग करने वालों को पहले कम से कम 12 महीने तक भारत में बिताना होगा। इसके बाद ही वे भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन के पात्र होंगे। इतना ही नहीं, इस एक साल के पहले के आठ सालों में से कम से कम छह साल भारत में बिताने होंगे। इसमें कहा गया है कि कानून में यह भी प्रावधान है कि यदि किसी नियम का उल्लंघन किया जाता है तो ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया (ओसीआई) कार्डधारकों का पंजीकरण रद्द किया जा सकता है।

पुरानी नागरिकता को त्यागना होगा
सोमवार को अधिसूचित नियमों में यह भी कहा गया है कि भारत की राष्ट्रीयता के लिए आवेदकों को यह भी बताना होगा कि वे मौजूदा नागरिकता को हमेशा के लिए त्याग रहे हैं और वे ‘भारत को स्थायी घर’ बनाना चाहते हैं।

ये लोग ले सकते हैं नागरिकता
नागरिकता अधिनियम, 1955 यह बताता है कि कौन भारतीय नागरिकता प्राप्त कर सकता है और किस आधार पर। कोई व्यक्ति भारतीय नागरिक बन सकता है यदि उसका जन्म भारत में हुआ हो या उसके माता-पिता भारतीय हों या कुछ समय से देश में रह रहे हों, आदि। हालांकि, अवैध प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्राप्त करने से प्रतिबंधित किया गया है। अवैध प्रवासी वह विदेशी होता है जो: (i) पासपोर्ट और वीजा जैसे वैध यात्रा दस्तावेजों के बिना देश में प्रवेश करता है, या (ii) वैध दस्तावेजों के साथ प्रवेश करता है, लेकिन अनुमत समय अवधि से अधिक समय तक रहता है। विदेशी अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 के तहत अवैध प्रवासियों को कैद या निर्वासित किया जा सकता है। 1946 और 1920 अधिनियम केंद्र सरकार को भारत के भीतर विदेशियों के प्रवेश, निकास और निवास को विनियमित करने का अधिकार देते हैं। 2015 और 2016 में, केंद्र सरकार ने अवैध प्रवासियों के कुछ समूहों को 1946 और 1920 अधिनियमों के प्रावधानों से छूट देते हुए दो अधिसूचनाएं जारी की थीं। ये समूह अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई हैं, जो 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले भारत आए थे। इसका मतलब यह है कि अवैध प्रवासियों के इन समूहों को निर्वासित नहीं किया जाएगा।

जमा करना होगा हलफनामा
इसमें कहा गया है कि देशीकरण द्वारा नागरिकता चाहने वालों को आवेदन में दिए गए बयानों की सत्यता की पुष्टि करने वाला एक हलफनामा भी जमा करना होगा। इसके साथ ही आवेदक के चरित्र की गवाही देने वाले एक भारतीय नागरिक का हलफनामा भी जमा करना होगा।

लेनी होगी निष्ठा की शपथ
इसके अलावा, अधिसूचित नियमों में यह भी कहा गया है कि भारत की राष्ट्रीयता मांगने वालों को आवेदन स्वीकृत हो जाने के बाद निष्ठा की शपथ लेनी होगी। इसके तहत वे भारतीय संविधान के प्रति सच्ची आस्था और यहां के कानून का पालन करने की कसम लेंगे।

जमा करने होंगे ये दस्तावेज
इसके अलावा नागरिकता मांगने वाले को अपने वैध या समाप्त हो चुके विदेशी पासपोर्ट, आवासीय परमिट, पति या पत्नी की भारतीय राष्ट्रीयता का प्रमाण, जिसमें भारतीय पासपोर्ट या जन्म प्रमाण पत्र की फोटो कॉपी या विवाह रजिस्ट्रार द्वारा जारी विवाह प्रमाण पत्र की फोटो कॉपी जमा करनी होगी। हालांकि ये अनिवार्य नहीं है।

31 हजार से अधिक को तुरंत मिलेगी नागरिकता
सीएए के लागू होने के साथ ही 31, 313 लोगों को तुरंत इस कानून के तहत नागरिकता मिल जाएगी। जनवरी 2019 में संयुक्त संसदीय समिति ने कानून से संबंधित विधेयक पर अपनी रिपोर्ट दी थी। इसमें बताया गया था कि 31 दिसंबर, 2014 तक भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश से आए गैर-मुस्लिमों की संख्या 31,313 थी। इन लोगों में सबसे ज्यादा 25,447 हिंदू, 5,807 सिख थे। इनके अलावा 55 ईसाई, बौद्ध और पारसी धर्म के 2-2 लोग भी शामिल हैं। ये सभी वो लोग हैं जो धार्मिक प्रताड़ना के चलते देश छोड़कर भारत आकर बसे थे।

मुस्लिमों को नहीं किया गया शामिल
सीएए का विरोध करने वालों कहना है कि इस कानून में मुस्लिमों के साथ भेदभाव किया गया है। उनका कहना है कि जब नागरिकता देनी है तो उसे धर्म के आधार पर क्यों दिया जा रहा है और इसमें मुस्लिमों को क्यों नहीं शामिल किया गया। इसका जवाब देते हुए तब सरकार ने कहा था कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान इस्लामिक देश हैं और वहां पर गैर-मुस्लिमों को धर्म के आधार पर सताया जाता है, प्रताड़ित किया जाता है। इसी कारण गैर-मुस्लिम यहां से भागकर भारत आए हैं। इसलिए गैर-मुस्लिमों को ही इसमें शामिल किया गया है।

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